Nikhil Pratap Singh   (✍️ निखिल 🍁)
118 Followers · 10 Following

read more
Joined 31 July 2019


read more
Joined 31 July 2019
1 MAR 2022 AT 23:11

"कभी कदमों की आहटें बता देती थीं
कौन आ रहा है करीब मेरे!
अब तन्हां हूं तो बस एक 'डर' ही है
जो वक्त-वेवक्त नंगे पांव चला आता है!!"

-


1 MAR 2022 AT 8:03

"अपने जीवन को सादा कर मैंने देखा है,
सब सहज लगता है ज्यादातर मैंने देखा है।।"

-


28 FEB 2022 AT 20:16

"प्रकृति के रुपहले पर्दे के नीचे,
अंगड़ाई लेती यह शाम,
जो ढल रही है...
मेघमय गगन से धीरे-धीरे!
संध्या सुंदरी की बदलती,
धरा का यह चित्र
उकेर रहा है कोई ब्रह्म अभ्यंतर,
किन्तु यह क्षण भी अतीत के आगोश में,
एक परछाईं बन कर रह जाएगा।।"

-


27 FEB 2022 AT 20:10

"आज मृदुल हवाओं का झोका
कुछ कह रहा है मुझसे,
मानों अपने स्नेह की सदाएं दे रहा हो,
सुन लें उन्हें या सिर्फ महसूस किया जाए!!
इक बात पूंछे,
इश्क़ हो रहा है तुमसे
बताओं क्या किया जाए,
रोक ले खुद को,
या फिर होने दिया जाएं.!!"

-


24 FEB 2022 AT 23:15

"जिसका ज़मीर मर गया वो जिंदा कहां रहा?
जिसने खुदा भुला दिया वो बंदा कहां रहा?

हो हौसलों में जान और इरादें बुलंद हो,
परवाज़ जिसने छोड़ दी वो परिंदा कहां रहा?

इंसान की पाकीज़गी, पायाब़ मापने से क्या होगा,
जो शमां की लौ में अस्तित्व वार दे वो पतंगा कहां रहा?

असफ़ार पर चला गया सबकी नवाज़िशे करने वाला,
जो सबसे इख़्तिलात रखता वो बशिंदा कहां रहा?"

-


23 FEB 2022 AT 23:17

"दिन भर जिंदगी की भाग-दौड़ में थककर,
यह तमता का मंजर कितना सुकून देता है...
वो सारे अरमां जो भोर की चकाचौंध में चटक गए थे,
यह तिमिर ही उन्हें संवार कर नया रुप देता है.!

व्यथित हो जाता हूं जब संघर्ष की लड़ाई लड़ते हुए,
यह मुझे अपने अंक में सुला लेता है..
फिर मुझे नए ख्वाबों के आयाम में ले जाकर,
उन्हें पुनः साकार करने का एक अवसर देता है.!!

जिस उजाले में मैं अपनी पहचान के लिए लड़ता हूं,
वो मुझे इस रात के गहरे मंजर ने दिलाई है,
वो मेरी हर खामोशी, हर दर्द के ताने बुनता है...
मैं भले ही इबादत न करूं पर वो मेरी हर फ़रियाद सुनता है.!!"

-


22 FEB 2022 AT 14:02

"पीर जब-जब हृदय की
प्रबल हो गयी...
आँख तब-तब हमारी
सजल हो गयी,
उलझी-उलझी मैं
कब सरल हो गई,
अश्क मोती बनें,
मैं गजल हो गई.!!"

पीर जब जब हृदय की
प्रबल हो गयी...

-


21 FEB 2022 AT 21:53

"श्वेत"...
वह तो इस तालाश में है कि कोई मिले जो अनमोल, अनुपम, अनुपमेय, अतुलनीय हो, जो भर सके उसके दामन में पाकिज़गी।
अपना ले उसके एकाकीपन, खामोशी व बेरंग जीवन को...
फिर तो वह अपना सर्वस्व लुटा देगा,
अपनी अस्मिता, अस्तित्व...
मन-वचन-कर्म से.!!

आखिर श्वेत सर्वश्रेष्ठ है, सर्वसम्मत है, सर्वालौकिक है।।।
और मैं शायद ही उसके जैसा त्यागी, तपोमय बन सकूं।

पर मैं उसकी बेरंग दुनिया में ले आऊंगा रंग जो उसके नजदीक है... उसका हमदर्द साथी:- श्वेताश्व।
(जो उसे शांति और सुकून देगा।)

-


20 FEB 2022 AT 19:31

मैं कुछ कहता हूं,
वो कुछ सुनती है।
मैं उसे महसूस करता हूं,
वो चुप रहती है।
मैं मौन हो जाता हूं,
वो गुंजन करती है।
मैं उदास होता हूं,
वो एकाकी रहती है।
मैं टूटकर बिखरता हूं,
वो सिमेट कर संजोती है।
में क्रोध करता हूं,
वो मुस्कुराती है।
मैं मायूस होता हूं,
वो सहम जाती है।
मैं सोचता हूं उसको,
वो उलझ जाती है मुझमें।
मैं समझता हूं उसको,
वो समझाती है मुझे।
आखिर हर शाम मैं उसमें खो जाता हूं।
है वो कोई एक बावली सी
सुंदर कहूं या सांवली सी।।

-


17 FEB 2022 AT 10:52

"जब मनुष्य का मन एकाकीपन में पड़ता है,
तो हृदय में दर्द का एक तूफान उमड़ता है,
कह नहीं पाता वो किसी से जहन की बातें,
और तड़प-तड़पकर तिल-तिल मरता है।।

मन के अंदर वेदना की बातें उमड़ती है,
बौछारें दूर न सही आंखों को गीला करती है,
शब्द श्रृंखला का बाण कागज़ पर चलता है,
जितना संभालों खुद को यह उतना उलझता है।।

कमीं कहां रह गई यह ज़ख्म यादों पर बनता है,
खुद तन्हां होकर यह अपने घावों को भरता है,
सब निकट होकर भी जानें दूर नज़र क्यों आते हैं,
मन का शोर संयत हो कर बेचैन हो उठता है।।

जब अपने अस्तित्व, अस्मिता को चोट पहुंचती है,
तब खामोशी, एकाकीपन से ही तो बातें बनतीं है,
ऐसे एकांत में खोएं मन को कौन जगाता होगा,
ये तिल-तिल जलने वालों को कौन बुझाता होगा.!!"

✍️ ज्योति बाला...🍁

-


Fetching Nikhil Pratap Singh Quotes