Nikhil Patidar   (thepaintbrushpoet)
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Joined 22 November 2018


Joined 22 November 2018
6 MAR 2021 AT 0:37

अफसोस

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19 FEB 2021 AT 20:14

यूं तो लोगो को दिखती है
गंभीर आंखें
शैतानी रुतबा
मर्दानगी भरी दाढ़ी
पर दिखते नहीं किसी को
रंगो में सने हाथ
हमेशा खोया मन
संवेदनशील कलाकार...

इस समाज में जीने नहीं देते
अपने हिसाब से
इस समाज में देखे नहीं जाते
सपने खुदके
यहां सपने देखना
और ज़िन्दगी जीना
तभी संभव है
जब वो
समाज की नज़रों में सही हो...

जो गलत है समाज की नज़रों में
उस छुपना पड़ता है
गंभीर आंखों
शैतान के सिंग
भरी पूरी दाढ़ी
के पीछे
© thepaintbrushpoet | Nikhil Patidar

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27 AUG 2020 AT 10:08

बहुत दूर, कितना दूर होता हैं
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किसी बच्चे से पूछो,
तो अपने हाथों को पूरा फैला कर कहता हैं इतना दूर
किसी समझदार से पूछो,
तो सोच समझ कर कहता है
पाँच-दस साल दूर मान लो
किसी आशिक़ से पूछो, तो दो जवाब मिलने की संभावना हैं
या उसकी माशूका के घर
या फिर पूर्णिमा के पूरे चाँद जितना दूर
अब आशिकी में भला समय, दुरी जैसी तर्कसंगत चीज़ो की
किसे सुध रहती है
किसी दार्शनिक से पूछो,
तो कहेगा दूर-पास सब रिलेटिव है
मन में दृढ़ता हो कुछ पाने की
तो कुछ दूर नहीं
वरना सब कुछ बहुत दूर है

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16 MAY 2020 AT 20:04

O Captain!, My Captain!
you taught us to change the perspectives
look at the world from a different angle
you taught us no poem is good or bad
meaning matters, even if words entangle


© thepaintbrushpoet

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10 MAY 2020 AT 13:57

माँ बस एक शब्द नही है
निःस्वार्थ प्रेम की निशानी है
माँ खुद में एक कविता है
माँ खुद में एक कहानी है








©thepaintbrushpoet

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29 APR 2020 AT 14:14

लोग मिसाले देंगे की
हमारे ज़माने में अदाकार एक इरफान होता था
हीरोगिरी से भरे सिनेमा में
वो खालिस अदाकारी की पहचान होता था
©thepaintbrushpoet

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3 APR 2020 AT 20:28

मेरी एक छोटी सी शायरी की दुकान है
मैं उसमे अपने खयालात बेच देता हूँ

किसी पत्थर दिल को मोम के जज़्बात बेच देता हूँ
किसी दुखी मन को फरहात बेच देता हूँ
गर खरीददार इलाज-ए-दर्द माँग लेता कभी
तो स्याह-दवात और खाली कागज़ात बेच देता हूँ


© thepaintbrushpoet

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27 MAR 2020 AT 19:47

ख़्वाब ही तो है, आँखों मे धूल की तरह पसरे हुए
क्या भरोसा कब किस आँसू के साथ बह निकले



© thepaintbrushpoet

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26 MAR 2020 AT 11:16

लिखने बैठो गज़ल कोई तो हाथ अब भी थरथराता हैं
कुछ भी लिखो नया पुराना मुड़ कर तुझ ही पर आता हैं
सोच रहा हूँ अब बस डायरी खोलते ही कुछ भी लिख दूँ
सोचने मे इतना समय लग गया जितने मे पन्ना भर जाता हैं

लिखने बैठो गज़ल कोई तो हाथ अब भी थरथराता हैं...



© thepaintbrushpoet

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25 MAR 2020 AT 15:17

जब कुछ खूबसूरत हो ज़िन्दगी में
यादें बना लो फटाफट
तस्वीर निकालने के चक्कर मे
सब छूट जाते है...

जब बैठे बिठाये घूमने के प्लान बने
बिना नखरे किये चल देना
मना करते-करते न जाने कब
यार रूठ जाते है...


© thepaintbrushpoet

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