ललाट उज्जवल तिलक धारी,नीलकंठित काया कलित
व्याघ्र सम वसन जिनका,है मुखौटा मनोहर ललित
एक कर में त्रिमुखी अस्त्र,एक डमरू से अलंकृत
अंग पर है भस्म जिनके,अधरो पे कान्ति स्मित अकल्पित,
कंठ पर भुजंग लिपटे,पग है पदत्राणो से सुशोभित
करमूल में है स्वर्ण कंकण,जटाओ पर गंगा धार अलौकिक
शांति या हो रौद्र दोनो ही स्वरूप उनमे समायित
अरिदलो का संहार कर,मारकर पीते थे शोणित।।
शत् नाम जिनके,वो है उदारित, ऐसे महान मेरे शंकर,
मानो तो शंकर हर हृद में,मानो तो हर कंकर शंकर,
मानो तो शंकर है अनादि,मानो धरा का हर कण शंकर।।
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