Nikhil Nigam   (Nikhil Nigam)
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Kuch mizaz hai ishq ka aisa....qatra qatra rooh mein utar jane ko jee kare.
Joined 30 November 2017


Kuch mizaz hai ishq ka aisa....qatra qatra rooh mein utar jane ko jee kare.
Joined 30 November 2017
9 JAN 2022 AT 1:19

मेरी खामोशी से ही हिसाब लगा लेना कि कितना बेहिसाब सा यकीन था मेरा ....
अब और कुछ कहना भी नहीं है, इसी से अंदाजा लगा लेना कि ये घाव गहरा है कितना मेरा ।

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5 JAN 2022 AT 23:15

ज़िंदगी में लोगों का आना कुछ हुआ तो ऐसे हुआ...कि अपने को बेमतलब रखा और लोगों के 'मतलब' में शामिल मैं होता रहा .......

और जब गए तो अपने मतलब से चले गए और मुझे तब भी 'बेमतलब' सा रखा ।

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22 DEC 2021 AT 11:06

उस मोड़ से गुजरते हुए आज उस मकान में "To Let" लिखा हुआ देखा ...
तब समझ में आया की किराए के मकान की तरह रिश्तों को भी लोग खाली छोड़ जाया करते हैं...

शायद रिश्तों को निभाने में Sorry बोलना गंवारा नहीं समझा...Ego ज़्यादा ज़रूरी है... इसीलिए सिर्फ अपने मतलब पूरे करने...लोग आपकी ज़िंदगी में दख़ल देने आया करते हैं ।

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21 DEC 2021 AT 11:08

कुछ लोगों ने रिश्तों को भी किराए का कमरा समझा...जरूरत जब छत की थी तो आसरा था और जब तक मतलब था ,तब तक रिश्ता था।

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10 DEC 2021 AT 10:41

ज़रूरत "रिश्तों" की है सिर्फ 'मतलब' भर के लिए ...मगर रिश्तों की ज़रूरत 'बेमतलब' भर की भी नहीं ।

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29 NOV 2021 AT 20:30

शराफत का फायदा उठाने वालों की कमी नहीं है इस ज़माने में ...कमी तो शराफत की है ,औरों का फायदा उठाने में ।।

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17 NOV 2021 AT 20:29

तेरे फर्क पड़ने से मुझे अब कोई फर्क नहीं पड़ता .... ये जो मैने खुद को बदला है, यही मेरा तुझसे 'बदला' है I

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24 OCT 2021 AT 1:16

मैं तो बेमतलब-सा था ... रिश्ते बनाए जिन लोगों ने अपने मतलब के लिए...

बेमतलब-सा शायद सोचते भी होंगे वो फासलों के बारे में,
मगर अब मैं दूर हूं उनसे...सिर्फ अपने 'मतलब' के लिए।


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26 AUG 2021 AT 20:10

ग़म इस बात का नहीं है कि फ़ासंले हैं ...
ग़म तो इस बात का है कि इन फ़ासंलों की "वजह" को ही फुर्सत नहीं है फ़ासंलों को मिटाने की...
गुमान माने बैठा है अपनी शर्तों की जिद्द पर ,
जब झुकना ही नहीं है तो क्या जरूरत है ऐसे रिश्ते को निभाने की...........
खुदगर्ज़ बनकर न जाने कितनी द़फा खुदगर्ज़ी के बयान दिए हैं ,
ज़रूरत नहीं है हर किसी को बार-बार अपने लिए आज़माने की ।

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14 JUL 2021 AT 21:54

वो ख्वाब जो आंखों में बसा हो...कोई और फितूर नहीं हैं अब,
मंजिल जिस पर चला हूं पर ...कोई और कसूर नहीं है अब,
ठोकरें खाई हैं जितनी मैंने अपनी तकदीर में...
जीत को हासिल करने के अलावा कोई और गुरुर नहीं है अब ।

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