'नजरिया' देखने का हो - 'देखने' का नजरिया नहीं
मैं (We) चीजों को किस रूप में देखता हूँ? सच मानिये मैं बोलूँगा उसी रूप में, जिस रूप में आप नहीं देख पाते या जैसे आप देखते ही नहीं, या हो सकता है आप जैसे देखना ही नहीं चाहते।
... और ये मेरा नजरिया बिल्कुल नहीं हो सकता, क्योंकि नजरिया आपको सीमित करता है। नजरिया आपको, किसी एक/कोई/कुछ बातों, खयालों, विचारों, भावों, कार्यों, सच, झूठ या स्थानों, या यूँ कहें, कि हरेक के सीमित क्षेत्र तक ही रखता है, सीमित क्षेत्र तक ही आपकी बौधिकता को चलने देता है। यह बहुत चिंतनीय है कि 'नजरिया देखने का' होने के बजाए 'देखने का नजरिया' पर अडिग होना आपकी बौधिकता को बढ़ने नहीं देता, सच आप सिर्फ रेंग पाते हैं।
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