Nikhil John Paul   (निखिल जॉन)
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इरादे विराट - हृदय सम्राट : ❤️ निखिल जॉन ❤️
Joined 19 November 2017


इरादे विराट - हृदय सम्राट : ❤️ निखिल जॉन ❤️
Joined 19 November 2017
23 MAY AT 20:51

स्त्री के तन के आगे
कभी तुमने उसे
पढ़ने की जिजीविषा ही नहीं दिखलायी

तुमने मात्र उसे आलिंगन, संसर्ग
और विलासिता की वस्तु समझ
उसका उपयोग किया !

आलिंगन और संसर्ग पुरुषार्थ नहीं
ये एक जरिया है देह व्यापार का
जिससे आज के नवयुवक
संक्रमित हैं और घोर संक्रमित हैं !

निखिल जॉन

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21 MAY AT 14:08

कितने बेशकीमती होंगे वो लोग
जो प्रेम में …..
अपना सबकुछ खो कर भी
अपने प्रेमी और प्रेयसी का
तिरस्कार किए बिना ही
बिना किसी तितिक्षा के
प्रत्यस्तगामी हो चुके हैं !

प्रेम प्रतिबिंबित करना ही
प्रेम नहीं होता !
पूछिये हमसे - जो मुझे छोड़ कर गए हैं
उनके बिना भी जीकर दिखाना
अलौकिक और अनुपम प्रेम का
एक अमूक और यथार्थ उदाहरण है ।

निखिल जॉन

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21 MAY AT 9:11

मूलतः अपने जीवन में मैंने
बड़ी ही ख़ूबसूरती से :

तुम्हें प्यार किया
तुम्हारे संस्पर्श को आत्मसात किया
तुम्हारे तन को पवित्र रखा
तुम्हारी हया की लाज रखी

और
जब तुम्हारा जी भर गया तो
तुमने मेरा साथ छोड़ दिया
मैंने भी तुम्हें बड़ी सादगी से
स्वतंत्र कर दिया , तुम्हें जाने दिया !

अपने अदम्य साहस और प्रेम पर
मैं आज भी संदेह नहीं अपितु
गर्व महसूस करता हूँ !

निखिल जॉन

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18 APR AT 19:29

ज़ुल्म सहा भी हमने और ज़ालिम भी ठहराये गए
खंजर भी खाया हमने और आज़माए भी हमही गए

निखिल जॉन

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16 APR AT 21:59

कैसे हो ?
कहाँ हो ?
क्या कर रहे हो ?
खाना खा लिए ?

इन सभी सवालों के जवाब
अब एक पिटारे में बंद हो चुके हैं !

मन करता है पूछ लूँ
अगर इज़ाज़त हो ?

निखिल जॉन

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16 APR AT 15:47

मेरा चुप रहना अहंकार नहीं है
इसमें बहुत दर्द छुपा है
आंसुओं की पूरी गंगा है इसमें

मेरा मौन मेरे सत्य का प्रतीक है
उस सत्य का जिसे तुम
देख नहीं सके ।

निखिल जॉन

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16 APR AT 15:38

ज़िंदगी बहुत छोटी सी है
कभी ज़िंदगी है भी
कभी नहीं भी

क्यों रखना इतना द्वेष
ख़त्म करो विद्वेष

ज़िंदगी सचमुच बहुत छोटी है
मुझसे पूछो -
मैंने देखा है मौत को सामने से
तब जाके लगा
इसी ज़िंदगी में ज़िंदगी को पाना ही
ज़िंदगी है

निखिल जॉन

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16 APR AT 5:07

वो लम्हे कभी नहीं आ सकते
जो तुम्हारे संग गुज़ारे थे
वो तितलियों की तरह उड़ना
जहाँ बाग तुम्हारे औ फूल हमारे थे

ना तुमसा कोई मिला ना कोई मिलेगा
आज भी गर याद आता हूँ तो
एक बार अपनी हामी भर देना
दिल के एक हिस्से के हिस्से जो हमारे थे

निखिल जॉन

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14 APR AT 18:05

लोग तो निकल जाते हैं ज़िंदगी से
पर दिल से नहीं

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14 APR AT 16:43

फिर वही शाम के अफ़साने लिए
महफ़िल में बैठेंगे तुम्हारे साथ
फिर वही गुफ़्तगू , फिर उसी
मुलाक़ात के बाद थामेंगे तेरा हाथ

निखिल जॉन

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