मै घर का इकलौता कहलाता हूँ
मै अपनी माँ का हाथ बटाता हूँ
जरा पापा से घबराता हूँ
मै घर का इकलौता कहलाता हूँ
राखी पे मै बैठ अकेला
देख कालाही खुद की मै
खुद को मै समझाता हूँ
मै घर का इकलौता कहलाता हूँ
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क्षण भर जीवन-मेरा परिचय !
कभी गिराते है कभी उठाते है
कभी भटके को राह दिखाते है
ये ही शिव है
जो इस दुनिया के मदारी का किरदार निभाते है
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कही खो गया हूँ इस भीड़ मे खुद को भूलाते जा रहा हूँ
पहले हर बात पर बहस क्या करता था
अब खामोश होते जा रहा हुँ-
एक कश जो मिल जाए, मेरे होटो को तुम्हारे हाथों से
तो मेरी रूह की लौ खुदा से मिल जाए
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पहुंच के बहुत बाहर हूँ बस इसी लिए लकीरें खीचता रहता हूँ खुद को बचाने के लिए
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इतनी खामोशी से अब जिंदगी बिता रहे है हम
जैसे गहरे समंदर के सफर पर जा रहे है हम-
मैं भी इन बदलो सा ही गहरा लगता हुँ शायद!
तुम हवा सी बन कर आओ तो मै भी बरस जाऊ शायद !-
अब ये नकली का मुस्कुराना हम छोड़ देते है
ये दुनिया है खंजर सी,
पर खुद मे ही अपना हम सुकून समटे है
चलो अब भूल जाते है जितने भी सितम है इस जहाँ मे
बस अब जरा दिल से मुस्कुरा कर दिल से जीते है
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ये वक्त खंजर सा है थोड़ी मरहम लगा दे माँ
मै अश्क़ लिए हूँ भटक रहा फिर से लोरी सुना दे माँ
इस जालिम ज़माने का क्या कहु, म
मै बच्चा ही अच्छा हूँ मेरा बचपन लोटा दे माँ
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जो दफन थी उनकी यादे उन पुराने किस्सों मे
बस जरा सा मुस्कुराना उनका उनमे जान फुक गई-