ये गलत कहा है किसी ने की मेरा पता नहीं है
मुझे ढूंढने की हद तक कोई ढूंढता नहीं है-
आँखों से अश्क़ बहने की इंतेहा
कोई पूछे हमसे
हम अपने दिल पर हाथ रखते है
खुद को सँभालने के लिए
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सिविल सर्विसेस की तैयारी
ना केवल तुम्हें सफलता प्रदान करती है
लेकिन माँगती है
अटूट समर्पण,
रातों की मेहनत
और ज़ब कभी
अटूट मेहनत के बाद
तुम्हारा pdf में नाम नहीं होता है
तब खुद को कैसे संभाला जाता है
यह भी सिखा देती है
अधिकारी बनाने से पहले
तुम्हें बना देती है
एक ऐसा इंसान
जो मजबूत होता है
विचारों से और व्यक्तित्व से
और खुद को संभाल सकता है
अजेय और कठिन परिस्तिथियों में
मुझे लगता है
सिविल सर्विसेस की तैयारी में,
अधिकारी बनना एक द्वितीयक सफलता है
प्राथमिक सफलता तो कठिन परिस्थियों में खुद पर खुद की जीत है
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जब कभी कोई ना हो तुम्हें सुनने के लिए
तुम्हारे हृदय में छिपे भावों को अभिव्यक्त करने के लिए
तो यह सोचकर मन को उदास करना
किस हद तक सही है?
क्या यह अपेक्षा रखना भी सही है कि कोई हो?
क्या आवश्यक है किसी का होना?
नहीं आवश्यक नहीं है किसी का होना
हम खुद है ना,खुद को समझने के लिए
क्या ये कहना भी अतिश्योक्ति है,
तो फिर वास्तविकता क्या है?
किसी का होना
या किसी के ना होने पर भी खुद का हमेशा खुद के साथ होना
लेकिन कब तक..........
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दुनिया से खुद को छुपाकर वो अकेले में रोती है
खुद को मजबूत कहते हुए भी वो सहारे के लिए रोती है
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बगावत जरुरी है ख़्वाहिश ऐ जहाँ पाने के लिए
इस जहाँ में तकदीर भी तदवीर से बदलती है-
दिल -ऐ -हयात भी उसके इंतज़ार में खो जाता है मुर्शद
आरजू बस यही है की वो, अब आ भी जाए-