अहम यही है की अहं नही है।
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भटके भटके जब थक जाओगे,
तो भला वापस कहा जाओगे ?
घर होता तो भी कुछ बात थी,
अब भला सोचो कहा जाओगे ?-
हम मयखाने के अजीज,
हम पैकार क्या जाने
मशरफ-ए-शमशीर,
हम इश्क़ के पैरोकार क्या जाने-
भूत के कल के बूत को
पीठ बैठाए जलता है
भविष्य के कल के दूत को
सीने लगाए चलता है
अभागा आज, वर्तमान का
बिना जिए ही ढलता है-
जो कहते है की इश्क दोबारा नहीं होता, शायद उन्हें एक बार भी नही हुआ है
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पढ़ने वाले समाज को बिगाड़ देते है
पढ़ने वाले सोचते है, सवाल करते है, तर्क देते है।
ये समाज सवालों के जवाब देने के लिए नही बने है, यह सिर्फ एक पट्टी पर चलने के लिए बने है। पट्टी बदलती रहती है, पर समाज का आचरण वही रहता है।
मनुष्य एकांक में तार्किक हो सकता है, पर भीड़ में वो भेड़ ही होता है। भीड़ सवाल नही करती, वो केवल अनुसरण करती है। सवाल करने वाले भेड़ की खाल उतारने की कोशिश करने लगते है, और बाकी भेड़ों को ये पसंद नहीं ।
इसीलिए ना पढ़े, ना सवाल करें । एक ही जीवन है, आराम से जिए।-
मन्नत के धागे
मन्नत के धागे मैंने
मन्नत के धागे
तुझपे ही बांधे मैंने
तुझपे ही बांधे
मिलजा तू मुझको अब तो
किस्मत से आगे
मन्नत के धागे...
(Read full lyrics in caption)
And do comment please-
बाहर बाहर झांके मनवा, अंदर क्यों न झांके है ।
अंदर अंदर ही भेद सारा, बाहर तू क्या ताके है ।।-