Nikesh Singh   (अवधूत)
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Nikesh Singh
Joined 10 June 2019


Nikesh Singh
Joined 10 June 2019
29 FEB AT 21:02

जाल अच्छा बुनती है इच्छा
फिर भी हम इस कगार पे थे
अच्छे अच्छे फिसल गए इससे
हम तो फिर भी अपने हाल पे थे।।

इस पौरुष पे आन मेरी है
तेरे जैसे कई मुझसे टकरा के निकले
इक इच्छा जो थी वो गुलामी तो नहीं
हम जब चाहे इस बाजार से निकले।।

मैं इस अवस्था में सन्यास में लूं
और तुम रोज उसी, उसी हाल में निकले
नियमो का टूटना इक सीमा में सही था
तुम थे की तुम क़िरदार से कंगाल से निकले।।

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29 FEB AT 1:36

तेरी वाणी में हो तो संयम रहे
तू कृष्ण भी हो तो शिशुपाल तक रहे
कौन करने देता है खुद को इतना मलिन
वो कचरा है तो क्या तू भी कचरा रहे?

देख के दुनिया सारी इतना ही बोलूंगा
तेरे हाथो में चक्र नहीं तो हाथो मे भाला रहे
कब तक सर्पों से जकड़ा रहेगा तू
अपना ना जाना और पराया अपना रहे?

होती ही क्यों महाभारत
द्रोपदी ही फिर अपमान क्यों
जो तू कीचड़ है तो क्यों कीचड़ रहे?

जितना है उतने पे थम जा
अपना सच अपनो में देख
परायों से तीर जा।।

अपनी जड़ों से कट के
पत्ता भी लहलहाया कब
तू जला है वासना में
अपने लिए छटपटाया कब?

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29 FEB AT 0:29

वेदना होगी तेरी
सच का सामना करो
रास्ते इसी पे चलो
रास्ते इसी से चलो।।

नाली में पलाश गंदा हुआ
सूर्य को एक घड़ी ग्रहण हुआ
या तो और गंदे बनो
या तो तरुवर बनो।।

उठो चीर तमस की छाती
शंकर का तूं बेटा है
फोड़ आंखे अंधक की
बेल बनो या धतूरा है।।

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29 FEB AT 0:19

वासना ने तुझे अंधा किया
दुनिया ने पागल है
जो किसी का न था
वो कब से तेरा है।।

एक,एक कहके छल से हरा है
मेरा शंभू भोला
तेरा डसने वाला है।।

शंकर ने बोला सब में ब्रह्म
मेरा जाग्रत हुआ
तेरा दानव वाला है।।

मैं राम तो न हो पाऊंगा
कोशिश अवधूत की
चरणों में जो पड़ा
शंकर मेरा रखवाला है।।

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29 FEB AT 0:09

ना मेरे पुरखे ने चाहा, न मेरी इच्छा थी
शंभू के भक्तो ने मारी, दुनिया को ठोकर ही।।

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28 FEB AT 21:52

लिखता गया और मिटाता गया
गम जो था उसी में छिपाता गया।

अपन है अपनी खुद मुख्तरी के मालिक
जो बन न पाया तो बिगड़ता गया।

पास होके भी पास नही हूं
मैं पास आता गया, मैं दूर जाता गया।

इतना देखा है बुरा होते हुए
अच्छाई जो थी, सब दफनाता गया।

क्या है मुक्ति और क्या ही मोक्ष
जो था जिंदगी में, सब समा सा गया।

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14 NOV 2023 AT 20:43

जो टकरा के तेरी सदाएं, मेरे से लौट आईं
जाने के किस सकूं में हो, मुझे पुकारा नहीं।


आतिश गिरे मुझपे, के हूं मैं लायक किसे के नही
इस गुबार में होगा, के मैंने देखा नहीं।


इक अरसा लगा, जिंदगी को पढ़ के बढ़ने में
आज मुक़ाबिल हो सारी जिंदगी के, मेरा के मेरा नहीं।


अंधकार के सामने, कुछ दिखता नहीं
क्रमशः लगता है, मेरा भाग्य मेरा नहीं।

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24 SEP 2023 AT 6:00

मेरे मरने के बाद यही होंगे, अनामत सबको
मेरा शेर, मेरा दर्द, मेरी तन्हाई, कायनात सबको।

ढुंढेगी उसमें दुनियां, अपने दिलों के राज़
कोई रोएगा पढ़ के, जो हो कल की बात।

किसी को दिन पुराने, याद आएंगे
कोई कोसेगा किस्मत पे, हर बात

ओर हो के किसी के लिए, कोई भी ना हूं मैं
मैं गुमनाम हूं, कोई भी ना हूं मैं

आदाब को दे दिया, एक दौर मैंने
जा शायरी के अंदर तलख , छोड़ दिया मैंने

ये शायरी आखिरी के इसके बाद कलम तोड़ दूंगा
मैं,मैं रहूंगा मुसाफिर, किसी का उधार नही लूंगा

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23 SEP 2023 AT 10:58

मैं फैसलों से तो, कतराता ना था
मैं ऐसा हर पल यूं, बदल जाता तो ना था।

मैं डर जाता हूं, आगे बढ़ने के ख्याल से
मैं, मैं हूं इस बात से, घबराता तो ना था।

तुने कर दिया है मुझे, जाने के क्या-क्या
संवारना मुझे ओर है, तराशना भी था।

जो टूट जा रही है, लय भी शेरों की
मैं शायर ग़ालिब था, बन गया हूं, क्या-क्या।

मैं, मैं बन गया हूं क्या अब
गुरूर, दर्द, तनहाई, जाने मैं था, क्या-क्या।

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11 SEP 2023 AT 12:10

क्यों बने मुसीबत तेरे लिए, जाते-जाते
वक्त का थपेड़ा की, टूटे तो जोर से।

वहदत से चलती नही कश्ती, तो वहशत
उठते हैं मन में तूफ़ां, बड़ी जोर-शोर से।

न रहा तो दुनियां भी, किस काम की
तकता है रस्ता, ब्रह्म भी भोर से।

कहीं नींद रखी, कहीं सकूं मेरा
मांगता है तो परगमन, वो भी तो कलोर से।


१ वहदत-अद्वैतवाद। २. वहशत- उजड्डपन
३ ब्रह्म- समय का एक पहर ४ कलोर- बिना गाभिन जवान बछिया (गाय)। ५ परगमन- transit

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