चाँद-तारों को देखो, तो आसमान अच्छा लगता है, कुछ पल जो ठहरे, वो मेहमान अच्छा लगता है। गाँव में हवेली, पसंद नहीं आती थी हमें, और शहर में, किराये का मकान अच्छा लगता है।।
शहर में आकर न जाने, क्या क्या हवा लगी, जो बीमार थे उनको, कोई न कोई दवा लगी। हर कोई हैरान था, सिर्फ मेरे बारे में सोचकर, मैं सलामत हूँ, मुझे तो दोस्तों की दुआ लगी।।