शराब की बोतलों में झुमंने वाली कितनी जावेदां जिंदगी उस पल मयखानों मे आबाद हुए तंग गलियों के उस शहर मे आज भी कहते है ना जाने कितने आए,मजॅ लिए कितने बरबाद हुए ।
दफ़न कर आया वो पूरा शहर, ना जिक्र हुई ना बात हुआ गुजरते वक्त के पैमाने पर सिफॅ ,वो ही आबाद हुआ जुल्म उसने किए, फसाने ,कहानी भी उसी के थे पर हर दफा ,कमबखत अकेला मैं ही बर्बाद हुआ
बदनाम ही सही, चलो तुम मुझे बदनाम कर दो, इस तरह ही सही, हर जुबां पे मेरा नाम आम कर दो, फुर्सत लेकर आऊंगा गर गिना ने हो तुम्हे कुछ शिकायतें, कम से कम इन्ही मुलाकातों मे मेरे हर सुबह को शाम कर दो।
काश फिर वही शामों का आना-जाना हो जाए, फिर वही बिता मुअयन्न जमाना हो जाए, कब तक कैद रहे ये भागती जिंदगी चार दिवारों में, फिर वही दिन ऑर शाम हो,ऑर ये रोजाना पुराना हो जाए ।
Kirdaar bahut hai mere Bas lamhe lamho ki baat hai..... Sawaal bahut hai mere Bas kehne ko na harf na alfaaz hai.... Gar mile jikr hamara tumhe Bolti hontho ke fashano me Samajh lena tum wahan Aaj waqt alag aur mere kisse hajar hai......
मजबूर बन हम अब कैद है इन मकानों में, रह रह कर बस खिड़कियों से झांक लेते है, तासीर तनहाइयाँ है ऑर हम ही तो है बस, तो कभी आइनें,तो कभी दिवारें निहार लेते हैं ।