गर्म हवाएं चल रही मानो, सूरज की धूप जला रही सबको
पर देख कर लगा तुमको, जैसे ठंडी शीतल हवाए घिरती गईं।
छत की तल रुकने को मना कर रही, मानो कह रही, जाओ
गली में मिला झलक तुम्हारा, लग रहा जैसे राहत मिलती गईं।
इन गर्म हवा के झोंको ने इस पूरे बदन को बहुत ही तपाया
तुमसे मिलीं गर्मी के पहर में, लगा मानो मैं बर्फ़ पर गिरती गईं।
गर्म आहें भरते होठ और उस पर सजा हुआ मुस्कान,
बाहों का सहारा तेरा, मानो घने पेड़ की ठंडी छांव बनती गई।
गर्मी की दुपहरी में वट सावित्री की पूजा थाल लिए मैं खड़ी
जो तुम मेरे प्रिय सांवले सखा, मैं तुम्हारी अर्धांगिनी बनती गईं।
मौसम ये गर्म हवा वाली, ठंडी यादों के बारिश जैसे लगने लगी
और 'नीलम' इस लू में जो डूबी, अनजाने ही पूरी पिघलती गईं।-
"मुझसे ही, मेरा वियोग"
"लफ़्ज़ों की आहट": Kwd, छत्... read more
किसी एक रात हंसी लम्हों का एक नया आगाज़ होगा
मिलना हो या ना हो पर किसी ख़ास को आवाज़ होगा
और ना हो इतने क़रीब मेरे दिल के इस कदर,
वरना तेरे दिल में सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरा ही राज़ होगा...!-
यहां लोग बेगैरत बेपरवाह बेमतलब के अनेक हैं।
खूबसूरती को संभाल लें ऐसे बस कुछ दो एक हैं।
हां, आप कह रहे तो शायद आप आदमी अच्छे होंगे,
मैंने सुना है कि इस जहां में कुछ लोग सच्चे और नेक हैं।-
क्या कहा औरत...??
चलो बता दूं तुम्हें,
वो बस जिस्म का कोई ओर नहीं है
बस साड़ी के पल्लू का एक छोर नहीं है
लोग माने मात्र वंश बढ़ाए ऐसा साधन हैं
पर वो कोमल सुंदर निश्छल एक शक्ति पावन हैं
वो सिर्फ़ हंसती नहीं हंसाती है
रोना ख़ुद का सब से छिपाती है
अब प्रश्न तुम्हारा, क्यों,,,?
तो उत्तर कि छोटी छोटी खुशियों में दिल से खुश हो लेती हैं
और अपनों के, या दिए दर्द में वो छुप छुपा कर रो लेती हैं..-
तुझे मालूम करा दूं कि अब तेरी फतह नहीं होगी,
तेरी हर आवारगी हर दीवानगी मुझ तक नहीं आएगी,
और अब ये दिल मानो ठहर सा गया एक किनारे पर,,
कोशिश न कर अब दिल किसी दिल-ए-गैर पर नहीं आएगी..!-
तेरी मौजूदगी की सुबह, एक एहसास हुआ मुझे,
अब तेरी गैर मौजूदगी की कई शाम, तेरे नाम कर रही।
तू कहे तब ही तुझे बताऊं, कि क्या क्यों कैसे ये सब,
न मालूम किस तरह, मैं अब अपना काम कर रही।
ये खयाल कभी आए गए मन में, पर बेशक रुके नहीं
हां, अब जज़्बात काफी हैं, जिसे मैं खुले आम कर रही।
हक़ की मांग नहीं, बस थोड़ा बातों में शामिल होना है
तू भी समझ ले, कि कैसे मैं इश्क़ को बेनाम कर रही।
ये जवाब मेरा कि तेरी बेवफ़ाई का इल्ज़ाम मुझपे हो
सजा यही कि मैं शौक से, खुद को बदनाम कर रही।
दूर रहे या पास कभी, क़रीब हो या शहरों की दूरी रहें
तू भी तड़प जाए थोड़ा, ऐसा कुछ अब इंतेज़ाम कर रही।
और 'नीलम' एक ख्वाहिश, जिसे लिखें बस पन्नों पर ही
सुन लो न, मेरी एक गज़ल, जिसे सिर्फ तेरे नाम कर रही।-
हां, बेमतलब चीज़ों से मोह रखना अच्छी बात तो नहीं।
अपने मोह छोड़ने की बातें सब से कहना अच्छी बात तो नहीं।
और ज़रा देखो परख के खुद को ही एक बार ज़रूर,
ख़ुद के कहानी में ख़ुद ही को वफ़ादार बोलना अच्छी बात तो नहीं...!-
ज़रा देर क्या हो जुल्फें कोई और संवार जाए।
इन जुल्फों के तले कोई और बहार दे जाए।
और पटाने के यूं ऐसे बेमतलब कोशिश भी न करना,
संभलना, ये न हो कि लोग तुम्हें दो-चार डंडे मार जाए....-
आत्मा का सौदा यदि
आसानी से हो तो बात क्या..
फूल की सुगंध सरलता से
छीन ले तो बात क्या..
और 'पराशर महाराज',
सभी का उत्तर 'ना' ही होगा,
यदि कोई बिना अस्तित्व के
जी पाए तो बात क्या...!-
मेरे किए का मुझे,
कोई मलाल नहीं...
1.यहां बेशक हर कीमतें आसमां छू रही
पर मैंने अपनी अदायगी चंद पलों में कर दी
हर वक्त बाजारों के जैसे नज़र बदल लूं,
मेरा ऐसा कोई चाल नहीं,,
मैंने घटाई कीमत मेरे खुद की
इस बात को मुझे कोई मलाल नहीं...
2.प्रेम इश्क़ मोहब्बत सब बस बात ही हैं
चंद घंटों में ही बीत जाए ऐसी रात ही हैं
पर एहसास मेरे वक्त दर वक्त बढ़ रहे,
कम हो ऐसा कोई साल नहीं,,
और मैंने लगा लिया दिल किसी गैर से
इस बात को मुझे कोई मलाल नहीं...
3.कभी रोकर तो कभी जागकर रातें गुजर रही
किसी के याद में किसी के बात में गुजर रही
ऐसे किसी भी के साथ वक्त मैं गुजार दूं,
ऐसा बुरा भी मेरा हाल नहीं,,
पर किसी खास की याद में रातें गुजार दूं
इस बात को मुझे कोई मलाल नहीं...
4.हर रंग में खुद रंग जाऊं ऐसा हरदम चाहा मैंने
हर किसी का पसंद बन जाऊं ऐसा हमेशा चाहा मैंने
पर इस चाहत में खुद के रंग को मैं भूल सी गई,
सफेद हुआ दिल अब रहा लाल नहीं,,
इसी रंग के साथ जीने लगी हूं मैं
इस बात का मुझे कोई मलाल नहीं.....
हां, सच मुझे, मेरे किए का कोई मलाल नहीं...-