तन्हाइयों के बिस्तर पर
ख़ामोशी की चादर बिछाकर सो जाती हूँ ..
और शिकायत है तुमको ये,
कि मैं तुमसे रूठ जाती हूँ
बिना कुछ कहे ही जज़्बातों को,
मन की गहराइयों मे क़ैद करके
दरख़्तों से चुपके से
सुकून को पास बुलाती हूँ
-
मै हूं 'निहारिका', सपनो की दुनिया में सोई...
Drawn in my own th... read more
अनकहे जज्बातो को लिखती हूं,
फिर तनहाईयों की तह में जाकर
बंदिशों के ढेर से,
सुकून को तलाशते हुए
खींचकर बाहर निकालती हूं…
रखकर उसको वेदना के
लिफाफों में
ख्वाहिशों को सँभालती हूँ….-
तुम आज भी अकेले हो,
सोचते थे ना
शायद हम यूं साथ रहे
तो पूरे हो जायेंगे..
और देखो ना,
दूर होकर
हमारी कहानी अधूरी रहकर भी पूरी हो गयी...
यही शायद अंत था
क्योंकि कुछ कहानियों की खूबसूरती उनके
अधूरेपन मे ही है...-
मै दुनिया को बताती नही
पर अपनी खुशियाँ
कभी छुपाती नही..
एक शाम को यूँ ही तन्हा,
छोड़ आयी थी दहलीज़ पर..
अपने हिस्से की रात पाने के लिये...
रोक कर घड़ी के काटों को
मै यूं ही पहेलियां बुनती हूं..
खुद के ख्यालो मे ही डूबकर
खुद से ही बात कर लेती हूं
बैठालकर अपने पास.... सुकून को
यादों के पन्ने पलटती हूं...
और इस तरह मै वक़्त को ज़ाया करती हूं,
इस रात के साथ में मै
ऐसे ठहरती हूँ..
फिर जैसे ही आहट आती है पहली किरण की,
ये रात समेटकर अपने बस्ते को..
धकेलकर मुझे ज़माने की भीड़ में,
निकल जाती है पिछली खिड़की से चुपके से..
मै इंतज़ार करती रह जाती हू उसका...
और सुकून का...
हर बार यूँ ही....-
सुकून...
जैसे सर्द मौसम मे चाय की एक प्याली..
गुमसुम रातों मे एक प्यारा सा ख़्वाब..
तंहाइयो मे एक साथ..
ग़मो मे माँ की गोद..
दर्द मे एक गहरी नींद..
उलझनों में एक चैन की सांस..-
मैंने अब लिखना छोड़ दिया,,
ना उम्मीदों से दोस्ती करके,
'काश' का इंतजार करते-करते
मैंने 'काश' कहना छोड़ दिया...
हर कोई अब रूठा लगता है मुझसे
मैंने अपनों का ख्याल करना छोड़ दिया...
लोगों के हर सवाल से मैंने
बिना वजह ही मुंह मोड़ लिया,
बेबसी की बाहों में मैंने
फिक्र को अकेले छोड़ दिया,
फिर एक अजनबी मोड़ पर
जज्बातों ने मेरा साथ छोड़ दिया...-
अब ज्यादा बात नहीं करते,
एक दूसरे के पास तो होते हैं
पर साथ नही होते..
अपनी अपनी अलग दुनिया
बना रखी है हमने,
एक दूसरे की खामोशियों को
बर्बाद नही करते..
ना पूछते है कि
कब आओगे तुम?
ना ही अब इंतजार करते...
दूरियां बढ़ती है रिश्तों में ऐसे ही
फिर भी हम ख्याल नहीं करते..-
उबासियों की सिलवटें है
खुद से ही रूठ गई है जिंदगी
बेचैनियों ने भी खोई आहटें हैं...
-
वो जो दीवार की तरफ है बिस्तर का
सुकून से बुलाता है मुझे अपने पास
ओढ़कर चादर मैं, अपनी खामोशियों की
चली जाती हू उसके पास
मिटती है सारी हलचले मन की जहा..
फिर बैठकर सुकून से
लिखती हूं कुछ नया...-
आज मेरी कॉफी में चीनी थोड़ी कम है
इसमें दोष किसका है
कॉफी का जो कुछ ज्यादा ही कड़क है
चीनी का जिसमे मिठास कम है
या एक perfect कॉफी मेकर का
जो की मैं हूं..-