मैं शबरी प्रभु श्री राम
कहीं से आ जाओ
हृदय का पथ बुहारूँ
श्री हरि कहीं से आ जाओ
मैं जूठी वाणी से प्रभुजी
तुम्हें मनाती हूँ
कंकड़-पत्थर ईर्ष्या के
प्रतिदिन हटाती हूँ
हे मेरे आदर्श कही से आ जाओ
करो जग कल्याण , कहीं से आ जाओ
मैं शबरी प्रभु श्रीराम कहीं से आ जाओ

- 🖋निहारिका नीलम सिंह