मंज़िल पाने को कुछ यू निकले थे हम और राह से कुछ यूं टकरा गए हम के मंज़िल के करीब होकर भी दूर हो गए हम राह ने साथ चलना सीखा दिया और मंज़िल ने रास्ता दिखा दिया
हो सकता है आज फिर हमारी बात ना हो, खुद को तेरे बारे में बता देंगे हम खुद को फिर समझा लेंगे हम यूं रोज़ बात करना ज़रूरी तो नहीं आज फिर खामोश रह लेंगे हम....
की मिलने की ख्वाइश में फिर सजने संवरने लगी आंखो में काजल लगाए फिर शरमाने लगी हाथो में हरी चूड़ियां पहन फिर आयना देख इतराने लगी की फिर होगी मुलाकात सोचकर फिर मुस्कुराने लगी...