कविता ढूँढता मन मेरा
जाने कहाँ ये खो गया ........-
पदं हि सर्वत्र गुणैनिंधीयते.....👣
मैं जर्द सितारा हूँ,
पर चमकना है मुझे .....
माना मुरझाए फूल जैसा हूँ मैं,
पर फिर से महकना है मुझे ......-
क्यों बेचैन से बैठे हो,
क्या खो गया है तुम्हारा
किसकी तलाश में लगे रहते हो,
बता दो किस बात का इतराना,
क्यूँ गम छिपाने को मुस्काना।।
तुम क्या हो ये जान भी लो,
कीमत अपनी पहचान भी लो।
इस भीड़ में चलते चलते ना जाने..
कहा खो जाओगे,
जी लो इन लम्हों को क्या पता ..
कब दुनिया छोड़ जाओगे......-
मैं उसके जैसा,
वो मेरे जैसा....
जिसमें खुद का ही अक़्स तलाशु,
मैं ही वो आईना हूँ ....-
मेरी माँ बताया करै कि मन्नै बचपन म बहोत कीड़ी मारेड़ी है....
घाट ना ला लिए ....
ताई आले.......😉😎🤪🤪-
कि तुम्हारे तो दोस्त बहुत है,
हम इतने पास थोड़ी है......
लगता था मुझे बस इतना की
काफी करीब है हम.....
पर ना जाने अब क्यों लगा मुझे कि
हम आपके उतने खास थोड़ी है......😔-
Every time I started a serious conversation with my friends but when they took it in a funny way......
Then me to my self:🤦♀️-
Me....
Trying to cover my whole syllabus ...one day before my exam 🤣🤣-
When you break something in kitchen and your mom is coming there to see what you have done....😨😰
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