nidhi verma   (निधि 'अर्चना')
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Joined 30 October 2017


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15 OCT 2021 AT 1:18

खानाबदोश हूँ ,
मैं मलंग शब्दों की गठरी लिए,
ढूंढती फिरती हूँ,
अपने ख़्वाबों के आशियानें।

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12 DEC 2021 AT 1:34

सत्य भी कभी,
जब दोराहे पर,
खुद से मिलता होगा,
क्या उसे भी,
उपेक्षा सहना होता होगा।

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12 DEC 2021 AT 1:32

सत्य भी कभी,
जब दोराहे पर,
खुद से मिलता होगा,
क्या उसे भी,
उपेक्षा सहना होता होगा।

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16 NOV 2021 AT 0:05

दुःख
पहले उदासी लाया,
फिर सांत्वना,
और
जीवन भर समझौता बन
साथ रहा।

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28 OCT 2021 AT 14:10

मेरी हर ख़ुशी में तुम्हारे जाने का गम शामिल रहता है।

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19 OCT 2021 AT 1:22

और मेरे अंदर का सैनिक
ठहर जाता है,
वो मरना तो जानता है
पर हत्या करना नही चाहता।

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14 OCT 2021 AT 1:00

वो भुलक्कड़ सा लकड़ा,
गीली टॉवल फेंक कर
जो भूल जाता था,
बिग बैंग की किताबों के साथ,
तुम्हारी कविताओं को सहेजे रखता है

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14 OCT 2021 AT 0:46

सारे गीत नाद धरे रह जाएंगे,
सारी रंगत , सारे रीत रिवाज
जब एक हंसता हुआ इंसान,
किसी अंधेरे कमरे में
भावनाओं की रस्सी थामे,
तुम्हे अलविदा कह जाएगा।

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14 OCT 2021 AT 0:37

मुझे हर वो
बिन सर पैर की बातें याद है,
जो मैंने तुम्हें हँसाने के लिए कही थी,
हां, वो जो उदासी ,
तुम मुझे सौंप गयी,
मैं उसे भूल बैठा हूँ ।

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14 OCT 2021 AT 0:33

कोई ख़्वाहिश है क्या,
छोड़ो ये सब गिले शिकवे
चलो कोई पुराना गीत गाते हैं
बेख़बर मैं,
शायद मिल जाऊँ खुद से।

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