Nidhi Upadhyay   (निधि उपाध्याय)
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कुछ जज्बात जो अक्सर मेरी कलम बयाँ कर जाती है..
Joined 23 April 2018


कुछ जज्बात जो अक्सर मेरी कलम बयाँ कर जाती है..
Joined 23 April 2018
21 SEP 2021 AT 20:17

स्त्रियां प्रेम में एक जैसी होती है...

वो लिखती है अपने प्रेमी का नाम,
कभी मेंहदी से, कभी पेन से,कभी आईने पे ओस की बूंदों से..

वो लेती है बलाए अपने प्रेमी की
माथे के चुम्बन से,
कुछ इस तरह जैसे टूट पड़े हो
आसमां से सैकड़ों तारे धरती पे,
और बचाती है उसे दुनियां की बुरी नजरों से,

वो रख लेती है प्रेमी का सर अपनी गोद में,
और देती है इजाजत उसे रोने की,
अपने हर गम,अपनी हर परेशानी को
आंसुओ में बहा देने की,

वो नही करती वादा
सात जन्मों का साथ देने का,
पर वो देती है साथ हर उस एक लम्हें में,
जहां उसका प्रेमी कमजोर पड़ रहा हो,
वो समझती है, समझाती है और
बन जाती है प्रेमिका से एक दोस्त, उस लम्हें के लिए,

कई किरदार अदा करती है स्त्रियां प्रेम में,
लड़ती है,झगड़ती है, बिन बात ही रूठती है,
पर अन्त में हो जाना चाहती है हर स्त्री अपने प्रेमी की...

हां मैंने कहा ना! स्त्रियां प्रेम में एक जैसी होती है......

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25 MAR 2021 AT 21:59

वो पूर्णिमा का चाँद है
मैं अमावस काली रात,
वो सरगम सात स्वरों सा
मैं करकस कोई तान,
वो कुरान सा पाक़ रहा
मैं बनी रही अभिशाप,
वो समाज का दर्पण है
मैं बीत चुका इतिहास,
वो सत्य भी चुनकर ले आए
मैं झूठ को करूँ प्रणाम,
वो लिखे तो बनती गजल कोई
मैं करूँ यूँ ही अभिमान,
वो इस जग में इकलौता है,
मुझ जैसे तुम्हें मिले "हजार"।।

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14 NOV 2020 AT 0:32

दूर-दूर तक अँधेरा है मेरे,
एक चिराग़ डेहरी पर जला लूं क्या।

तुम मांग तो ना लोगे किराया मुझसे,
तुम्हरा ये घर आज सज़ा लूँ क्या!

बहुत भूखे है बच्चे मेरे,
ए-खुदा तेरे दर से भी कुछ चुरा लूँ क्या!

जमाना रोशन हुआ है आज रोशनी से,
मैं भी अब दीवाली मना लूँ क्या!



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29 OCT 2020 AT 19:12

पवित्रता की पहचान कैसे हो,
प्रेम के दो घूंट या कि बस अग्नि परीक्षा हो!

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29 OCT 2020 AT 12:29

मेरे लिखे ख़त अलमारी में पड़े,
पीले हो गए होंगे,
जब भी तुम्हें हल्दी लगेगी इनका रंग,
तुम पे चढ़ेगा,
और रखे सारे ख़त काले हो जाएंगे।

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27 OCT 2020 AT 22:29

जब तू होता तो है पर दिखता नहीं,
जब तू मायूस होता है पर कहता नहीं,
जब तू छुपा लेता है जज्बात सारे दिल के,
हाँ तब मुझे उदास करती है चाँदनी।

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27 OCT 2020 AT 20:21

है गुनहगार तेरे ग़र तो सज़ा-ए-मौत मुकम्मल हो,
यूँ तेरा खुद को खत्म करना हमसे और देखा नही जाता।

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29 SEP 2020 AT 21:54

हर रोज वही घटना बस किरदार बदल रहे है,
सत्ताधारी कल भी मौन थे,वो आज भी मौन रहे है।

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29 SEP 2020 AT 21:44

उसके जिस्म को नोचकर आज फिर फेक दिया है,
मैं कैसे कह दूँ मेरा देश बदल गया है।

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29 SEP 2020 AT 21:23

अभी तो सिगरेट पूरी खत्म भी नहीं हुई थी,
कि तुमने बात जाने की कर दी।

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