स्त्रियां प्रेम में एक जैसी होती है...
वो लिखती है अपने प्रेमी का नाम,
कभी मेंहदी से, कभी पेन से,कभी आईने पे ओस की बूंदों से..
वो लेती है बलाए अपने प्रेमी की
माथे के चुम्बन से,
कुछ इस तरह जैसे टूट पड़े हो
आसमां से सैकड़ों तारे धरती पे,
और बचाती है उसे दुनियां की बुरी नजरों से,
वो रख लेती है प्रेमी का सर अपनी गोद में,
और देती है इजाजत उसे रोने की,
अपने हर गम,अपनी हर परेशानी को
आंसुओ में बहा देने की,
वो नही करती वादा
सात जन्मों का साथ देने का,
पर वो देती है साथ हर उस एक लम्हें में,
जहां उसका प्रेमी कमजोर पड़ रहा हो,
वो समझती है, समझाती है और
बन जाती है प्रेमिका से एक दोस्त, उस लम्हें के लिए,
कई किरदार अदा करती है स्त्रियां प्रेम में,
लड़ती है,झगड़ती है, बिन बात ही रूठती है,
पर अन्त में हो जाना चाहती है हर स्त्री अपने प्रेमी की...
हां मैंने कहा ना! स्त्रियां प्रेम में एक जैसी होती है......
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