अशांत मन ठहर गए हैं
पंछी घर को लौट रहे हैं
बिस्कुट को चाय का इंतजार है
गृहणी प्रतिभोज बनाने को तैयार है
सुना है फिर इक 'शाम' आई है-
🌹Insta- _shubhanshi_srivastava_
Page- @kalamkaar_nidhi
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है तिमिर बेताब जिसकी हर प्रभा पर नजर रही है
है अमावस किंतु बारी आज क्यों उसकी नहीं है
आज है कुछ खास बंधू ,प्रभा हंस कर कह रही है
है अमावस किंतु बारी आज तो तेरी नहीं है-
स्त्रियां जब मौन होती हैं
तब बोलते हैं उनके आभूषण
उनके टखने पर
सजी पायल के
कुछ घुंघरू काफ़ी नापतोल
के दर्शाते हैं उनके भावों को
रोष झलकता है
यदि घुंघरू की ताल में वेग हो
और
झलकता है उल्लास
यदि घुंघरू की ताल मधुर हो-
गज़ल
निशा से कहो कोई दिन सा न आए
हमें तोड़ दे वो खुलासा न आए
हाँ वादा था आकर मुहब्बत बचाना
कि आशा से कहना निराशा न आए
कहा था कि मिलकर हराना है दुःख को
कि धोखा मिला अब भरोसा न आए
फिसलते हुए पल चले जा रहें हैं
सहा है बहुत अब तमाशा न आए
'निधी' को लगा तुमसे साँसे हैं चलती
कि ऐसा भरम अब जरा सा न आए-
'LOVE' और 'प्रेम' की वार्ता
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तुम अंग्रेज़ी की 'लव-शव' सी
मैं हिंदी की 'प्रेम' सी हूँ
तुम रोमियो जूलिएट की स्मृतिचिन्ह
मैं मेरे राधा-कृष्ण की देन हूँ
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दृढ़प्रतिज्ञ, विद्वान,कृतज्ञ और कांतिमान है मोरे राम
मर्यादित ,कर्तव्यपरायण गजब निराले मोरे राम
तुलसी के दोहे में राम ,कबिरा की साखी में राम
अयोध्या जिनकी जन्मभूमि है उनका नाम जपै हनुमान-
ज़िंदगी खूबसूरत है या बदसूरत
निर्णय आप ख़ुद कीजिये
मुट्ठी भर रोशनी को तरसती है कोई झोपड़ी
आपको क्या
आप केक पर तमाम मोमबत्ती जलाइये-
परिस्थिति फिर कब तक चीखती
समाज के कुरूक्षेत्र का धन रूपी शकुनी था शातिर
कोई घिसी चप्पल की फरियाद कर रहा था
जब हम रो रहे थे नए जूतों ख़ातिर-
वो खून- पसीने की कमाई लिखूं
या सलामत है जिसके दम पर वो रहनुमाई लिखूं
सुरक्षा लिखूं ,सहायता लिखूं या जिम्मेदारी लिखूं
हे ! पालनहार तुम्हारी क्या बड़ाई लिखूं
वो बचपन में चलना सीखाना लिखूं
या हर पल साथ निभाना लिखूं
दृढ़ता लिखूं ,हिम्मत लिखूं या प्रेम लिखूं
हे ! पालनहार तुम्हारी क्या बड़ाई लिखूं-