Nidhi Singh   (निधि)
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Joined 14 April 2018


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Joined 14 April 2018
1 SEP 2021 AT 17:41

इक खत पकड़ा जाओ ना।
जो बातें अधूरी थी,
उन्हें पूरी करने आओ ना।

जानती हूं मुझसे ज्यादा जरूरी,
कर्तव्य है तुम्हारा।
देखो रूठी हूं तुमसे
इस बार मनाने सरहद से आओ ना।

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1 SEP 2021 AT 9:46

क्षितिज को पाने की जो चाह है,
वो बस चाह नहीं एक सपना है।
उसे पा के तुम ये देखोगे,
जो पराया था अब वो अपना है।

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17 FEB 2019 AT 20:23

सुकून भरे पल के लिए व्याकुल हूँ मैं...
माँ मेरे सारे गम हर लो,
चैन की नींद सोने को आतुर हूँ मैं...

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5 JAN 2019 AT 10:46

खिड़की बंद पड़ी है कब से,
ख्वाबों नें आसमां देखना छोड़ा है
तब से..
क्षितिज को पाने के ख्वाब भी देखे थे
कभी,
वजह तो नही मालुम,
पर उम्मीदों नें रिश्ता तोड़ लिया अब इन सबसे..

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17 JUL 2018 AT 21:12

आज ये चाँद भी न जाने क्यों,
बुझा बुझा सा मालुम पर रहा है..
या तो ये भी दूसरों की तरह,
मुझसे नाराज़ है..
या फिर ये मेरी ही तरह,
खुद से नाराज़ है..

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10 JUN 2018 AT 18:35

of my existence..
This is not the end of my persistence..
This is not the end of my creativity..
This is only a virtual death of my optimisticity..

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10 JUN 2018 AT 12:42

आईने से यारी रख..
अदाओं में खुमारी रख..
नज़रों में होशियारी रख..
ज़िंदादिली बहुत सारी रख..
तब ये दुनिया तो तेरी ही है,
बस जीतने की तैयारी रख..

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9 JUN 2018 AT 18:07

They will be astounded by cognizing the fact that this girl has always acted externally fictitious..

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8 JUN 2018 AT 17:03

to be ignited by your calibre and brilliance..You just have to explore and then explode yourself outstandingly to be the triumphant..

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4 JUN 2018 AT 16:38

कामयाबी की तलाश में..
अपनों को छोड़ चली हैं
आसमां की आश में..

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