चंद ही दिनों में अखबारों की सुर्खियां फिर बदल सी गयी..,
चाय की चुस्कियों के साथ फिर किस्सें बदल गये..,
कैंडल मार्च और नारी शक्ति के स्टेटस अपडेट भी बंद से हो गये..,
और देशभक्ति की भावनाऐं उतने ही तेजी से अगले किस्से के इंतजार मैं लौट सी गई...।
समझ नहीं आया की जो हुआ वह संतुष्टि का एक कदम था या न्याय व्यवस्था को लगाया गया तमाचा..,
पता नहीं 'प्रियंका' को न्याय मिला या नहीं ..
पर क्या हुआ निर्भया का ..?
क्या हुआ उन हजारों किस्सों का...जिन्हें सिर्फ सिसकियों में ही दबाया जाता रहा ..?
खैर मन में सिर्फ एक संतोष ही रहा की यह किस्सा तो खत्म हुआ ...।
खौफ तो अब भी है हर बार घर से निकलने में उस दरिंदगी के साए का खौफ ..,
हर बार घूरती हैवानियत की नजरों का खौफ ..,
खौफ कि फिर नए किरदार के साथ यह किस्सा दोहराया जाएगा .. ,
और फिर इंसाफ नहीं मिल पाएगा...,
फिर उतने ही वेग से देश प्रेम की भावनाओं का समुद्र हिलोरें मारेगा ..।
लेकिन हां फिर बहुत देर हो चुकी होगी...,
पर चाय की चुस्कियों को करारा बनाने के लिए मनोरंजन का ...,
और मोमबत्तियां फिर से जलाने का मुद्दा एक बार फिर मिलेगा....।-
..Upscaspirant...book lover📚
Wanna to be...civil servant which is 'civ... read more
Education is only the one thing which transforms lives not only one generation but across generations #booklover❤️
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Pehli hi takni m ban gyi jaan p..
Naina waina uske mere dil p chape...
Ab jaaun kha p , dil ruka h wahaan pe...
Jha dekh k mujhe vo aage badh gya oye...-
जब भी खुद को जिंदगी के भंवर में फंँसे हुए पाया है...,
अपने को सारी उम्मीदें छोड़ सिर्फ आपकी शरण में पाया है..,
आपने भी हमारी बिगड़ी को हर बार संँवारा है और आपके अस्तित्व में हमारे विश्वास को और सुदृढ़ करवाया है..,
इतनी सी उम्मीद है कि आपके चरणों में हमारा विश्वास यूंँ ही बढ़ता रहें...,
मां की तरह आप हमारी सारी गलतियों को अनदेखा कर अपनी कृपा हम पर यूंँ ही बनाती रहें...।-
काश मुद्दतों बाद की आँधियाँ इन मजबूरियों को मिटा पाती...
वो बचपन वाली राह फिर मुकम्मल हो पाती..
अपने लिये जीना भी कब चाहा था,'अपनो'के लिए जीने की तमन्ना तो पूरी हो पाती..
खुद को खोजना तो बहुत पहले छोड़ दिया था,
कि अब खुद से छूट जाना बाकी था..
एवज में चाहे कुछ भी ले लें जिंदगी,
सिर्फ इन बेजज्बाती आँखों का उसे खुश देखना काफी था....
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शांति की गूँज कैसे शुरु हो , हर वक्त दिल्ली से..,
कभी तुम भी तो बोलो, अमन-चैन की बोली लाहौर से...।-
जिस वजह से आँखों की नींद खो जाए
हर नयी सुबह वही कहानी शुरु हो जाती है...📚❤️
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उस मुसाफ़िर पर असर सिर्फ दुनिया का ही रहा,
जिसकी आँखों में निगाहें कितनी ही बार खो जाया करती थीं।
हमने तो सोचा था कि वे हाल-ए-दिल समझते है,
वो बेगानों से पूछते थे कि हम मर चुके है या अब भी साँस लेते है।
उन्होने हाल भी पूछा तो बेगानों से ,
नहीं थी रिश्तों में गहराई तो गुजर ही जाते क़रीब से।
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मुझे मेरे अज्ञान का ज्ञान हैं..
पर रास्तें और रिश्ते दोनों निभाते हैं।
हम फ़ैशन ज़रुर बदलते हैं ...ज़नाब
नहीं बदलते तो मंजिल और ख़्वाब।-