चंद ही दिनों में अखबारों की सुर्खियां फिर बदल सी गयी..,
चाय की चुस्कियों के साथ फिर किस्सें बदल गये..,
कैंडल मार्च और नारी शक्ति के स्टेटस अपडेट भी बंद से हो गये..,
और देशभक्ति की भावनाऐं उतने ही तेजी से अगले किस्से के इंतजार मैं लौट सी गई...।
समझ नहीं आया की जो हुआ वह संतुष्टि का एक कदम था या न्याय व्यवस्था को लगाया गया तमाचा..,
पता नहीं 'प्रियंका' को न्याय मिला या नहीं ..
पर क्या हुआ निर्भया का ..?
क्या हुआ उन हजारों किस्सों का...जिन्हें सिर्फ सिसकियों में ही दबाया जाता रहा ..?
खैर मन में सिर्फ एक संतोष ही रहा की यह किस्सा तो खत्म हुआ ...।
खौफ तो अब भी है हर बार घर से निकलने में उस दरिंदगी के साए का खौफ ..,
हर बार घूरती हैवानियत की नजरों का खौफ ..,
खौफ कि फिर नए किरदार के साथ यह किस्सा दोहराया जाएगा .. ,
और फिर इंसाफ नहीं मिल पाएगा...,
फिर उतने ही वेग से देश प्रेम की भावनाओं का समुद्र हिलोरें मारेगा ..।
लेकिन हां फिर बहुत देर हो चुकी होगी...,
पर चाय की चुस्कियों को करारा बनाने के लिए मनोरंजन का ...,
और मोमबत्तियां फिर से जलाने का मुद्दा एक बार फिर मिलेगा....।
-