nidhi patel  
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Love to write
insta page:- dil_ki_baatein1416
Joined 15 July 2020


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Joined 15 July 2020
30 JAN 2022 AT 21:47

क्यों इस धूप से मैं,
रिश़्ता तोड़ना चाहती हूँ।
शायद ख़ुद की ही परछाई से,
मुँह मोड़ना चाहती हूँ।
थक गया है ये ज़ेहन,
भारी बोझ के तले।
अब तो ये ज़िन्दगी भी कहती है,
कि मैं जीना छोडना चाहती हूँ...— % &

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16 JAN 2022 AT 20:37

कुछ रिश़्ते,
बेनाम होकर भी,
ख़ास होते हैं।
वक़्त कैसा भी हो,
वही तो है,
जो हमारी आस होते हैं।
और कमबख़्त ज़िन्दगी भी,
कितने रंग दिखाती है।
कुछ लोग पास रहकर भी ,
दूर होते हैं,
तो कुछ,
दूर होकर भी,
हमेशा पास होते हैं...

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15 JAN 2022 AT 17:44

ग़म नहीं अब किसी बात का,
कमबख़्त,
अब तो हर एक बात ही,
ग़म बन गई है...

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14 JAN 2022 AT 21:37

रात गुज़र जाएगी यूँ ही,
किसी ख़्याल में डूबे हुए,
न जाने कैसा अहसास था वो,
जो हुआ हवा को छूते हुए...

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14 JAN 2022 AT 19:39

The butterfly 🦋,
continued to fly,
Carefree.
She didn't care about anything,
she just spread,
her wings.
And,
kept flying with wind...

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12 JAN 2022 AT 19:17

वक़्त के साथ हालात बदलते हैं,
और,
हालात के साथ इंसान।
रिश़्ते भी बहरूपिये से हैं,
कब कौन-सा रूप बदल लें,
कोई न पाये जान...

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11 JAN 2022 AT 10:39

कुछ शब्द,
ग़म दे जाते हैं तो,
कुछ खुशियाँ दे जाते हैं।
कुछ शब्द,
दर्द दे जाते हैं तो,
कुछ हमदर्द बन जाते हैं।
कुछ शब्द,
चोट पहुंचाते हैं तो,
कुछ मरहम बन जाते हैं...

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10 JAN 2022 AT 10:28

हारा हुआ-सा वो पत्ता,
जो शायद अभी- अभी,
पेड़ से टूटकर गिरा है।
थोड़ा थका हुआ सा लगता है,
जैसे किसी परेशानी से,
बहुत अर्से तक लड़ा है।
कहता है कि बहुत कोशिश की मैंने,
अपने-आप को,
पेड़ पर टिकाये रखने की,
मग़र कमबख़्त हवाओं ने,
हर एक कोशिश को,
नाकाम करके रखा है।
आया बहाव हवाओं का,
उसे संग अपने ले जाने,
चला गया वो ख़ामोशी से,
फिर किसी रोज लौट कर आने...

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12 NOV 2021 AT 10:18

पूरी तरह बिख़रा पड़ा था वो काँच,
मगर,
बिना किसी को जख़्म दिए...

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9 NOV 2021 AT 20:51

तन्हाई अच्छी लगती है,
शायद,
किसी का साथ,
अब अच्छा नहीं लगता...

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