Nidhi maddhesiya   (निधि मद्धेशिया)
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नाम- निधि मद्धेशिया (नम)
शिक्षा- अनवरत
पति - गोविंद (राम)
पुत्र - प्रशांत
Joined 12 October 2019


नाम- निधि मद्धेशिया (नम)
शिक्षा- अनवरत
पति - गोविंद (राम)
पुत्र - प्रशांत
Joined 12 October 2019
12 MAY AT 23:38

जाने कौन सखी रो रही है।
बहुत बेचैनी मुझे हो रही है।
उनकी यादों का गोष्ठी चली,
बाद-दिनों मेरी ओर हो रही है।

निधि मद्धेशिया
कानपुर

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12 MAY AT 23:32

रिश्तों से कट गया हूँ मैं।
तेरा होके हट गया हूँ मैं।
बहुत सारी दुश्वारियाँ हैं,
मानकर मिट गया हूँ मैं।

निधि मद्धेशिया
कानपुर

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11 MAR AT 11:29


मन की
करता नहीं मन किसी से मिलने जुलने का
किसी से बात करने का
हो गया है पक्का चीर हरण
मेरी उस सोच का,
लिखा था जिसमें सब होता है कर्म से,
अब हूँ मैं भाग्य के सहारे,
घर की चारदीवारी मेरा सबकुछ हो गया
विष घुल रहा धीमा मेरे विचारों के जहन पर
बंद हो गए कपाट मेरी खनकती हँसी के...
बस बच गया क्रोध लोभ मोह और अहंकार मन-बुद्धि की जमी पर...
न जाने कौन-सा तंत्र बंधा है मेरे पाँवो के जहन में
छोड़िए दौड़ना तो दूर, खिसकते भी नहीं हैं अब...
न पढ़ने का मन ने बतियाँने की इच्छा
न लिखने को आतुर न व्यग्रता होए चतुर
लहू जम रहा देह का ( गाढा )
अकड़न आ गई स्वभाव में ...
बसंत का एहसास नहीं
फागुन की चुलबुलाहट नहीं
न पर्व का उत्साह
सूर्य के प्रकाश में दीखता सब स्याह-स्याह...
होती मद्धिम आँखों की रोशनी
जी का घबराना,
अच्छा कुछ नहीं रहता याद,
समय कौन-सा गा रहा तराना...
बहुत कठिन हो रहा समय को निभाना
कोई आया न गया
कौन-सा गीत रह गया गुनगुनाना...

निधि मद्धेशिया
कानपुर

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10 DEC 2024 AT 19:22

अनुगामी
साथ को तुम्हारे कैसे कहूँ,
कैसे शब्दों के आवरण से,
भावो का बहाव ढाकू,
न बिछड़ना, न मिलन की आस,
जाने कैसा बना संजोग-विश्वास,
तुम्हारे पदचिन्हों पर स्वयं के चरण
रखना,
तुम्हारा पलटना मेरा झिझकना-ठहरना
तुमपर अपनी छाप छोड़ने की
कोई मंशा न थी,
क्या घटा तुम जुड़ गए
अनुगामी भी नहीं बन पाएँ
न मिले दोबारा
बस अबतक बिछड़े नहीं...
निधि मद्धेशिया
कानपुर

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5 SEP 2024 AT 23:43

जब पुरुष बुद्धि से नपुंसक होता है,
उसकी पत्नी को खूब प्यार सम्मान मिलता है
,पति से
या जीवन पर्यन्त केवल प्रताड़ना,मानसिक तनाव और रोगों से भरा शरीर
या
संग रहते हुए भी पत्नी स्वयं को विधवा मान लेती है कुछ वर्षों में,
तब उसे लाल जोड़ा लाल कफन दिखाई देता है
हर विवाह का..
ईश्वर ऐसी स्तिथि से स्त्रियों को बचाएँ।

निधि मद्धेशिया
कानपुर

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5 SEP 2024 AT 23:20

समाज का एक रूप

शरीर स्त्री अपने बच्चों के भरण पोषण के लिए भी बेचती है वो बाजार की नहीं, लेकिन जो ईर्ष्यावश दूसरों ( भाभियो, बहनों स्त्री के हर उस रूप को जो गलती से भी शांति नहीं रहने देती ) के परिवार में झूठ बोलकर उलट-पुलट कर कलह करवाती है समाज की नज़र में वही सच्ची बाजारू स्त्रियाँ होती हैं जो किसी भी कीमत पर अपने आस-पास खुशी नहीं सहन कर सकतीं।
दूर रहें या पास जानकारी पड़ोसियों से रखती दूसरों के घरों की, कुलक्षनि भी यही होती हैं अपने बेटे बहू में भी नहीं बनने देती/देते।
ऐसे भी समाज मे आसपास में स्त्री पुरुष रहते है इनसे बचकर रहो, ये बहुत मीठे, नाटकबाज होते हैं, परमात्मा एसो से भले सभी लोगो की रक्षा करें।

निधि मद्धेशिया
कानपुर

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31 AUG 2024 AT 8:30

मुक्तक
हर रिश्ता, हर भाव बिकाऊँ।
हो गए सभी संस्कार बिकाऊँ।
बढ़ गए छल-खर्च, करें हानि,
क्षण-क्षण के अधिकार बिकाऊँ।

निधि मद्धेशिया
कानपुर
उत्तर प्रदेश
12 अक्षर

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18 AUG 2024 AT 0:32

स्त्री

कभी नहीं ठगी जा सकीं
जो स्त्रियाँ
छलावे के पत्रों से ...
धन के अस्त्रों से...
भय के शस्त्रों से...
आयुभर छली जाती हैं,
मौन आमंत्रणों से...
काली मोतियों की लड़ी से...
बहुत सताई गईं कड़ी से...
स्वयं को न छुटवा पाईं
भय की छड़ी से...
क्षण-क्षण मरती ही रहीं ...
चुटकी भर सिंदूर से ...
भावात्मक रिश्तों के नूर से ...
सिसकती रहीं अधजली-सी...
स्वयं से विस्थापित हुईं
अपनों के अहम-चूर से ...
कहाँ जाता है उनका साहस...
खोजती हैं प्रत्येक क्षण ढाढ़स..
कौन-सा चुंबकीय आकर्षण,
उन्हें स्वयं को पछाड़ने के लिए,
करता होगा बाधित ...
उनके हिस्से क्यों नहीं आते आदित्य ....?
निधि मद्धेशिया
कानपुर

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4 AUG 2024 AT 7:57

मित्रता दिवस की सभी को शुभकामनाएँ।
स्त्री-पुरुष में हो मित्रता कृष्ण-कृष्णा-सी,
पुरुष-पुरुष में हो मित्रता राम-केवट-सी,
स्त्री-स्त्री में हो मित्रता प्रेरणादायी ...
मेरी आप की मित्रता हो धरती-आकाश-सी,
फूल-काँटे-सी, पृथ्वी-जल-खाद-सी,
मित्रता दिवस की सभी को शुभकामनाएँ।

निधि मद्धेशिया
कानपुर

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1 AUG 2024 AT 0:53

संस्कार
कलिकाल का हो गया विशेष उत्सव
सोलहवाँ संस्कार मृत्यु भी ....
बनवाए जाते हैं बूंदी नहीं रसगुल्ले...
ठाठ होता है खुशी के भोज-सा...
नहीं होता सच में किसी के जाने का दर्द...
फिर भी ढूँढ़ता है मन कभी कहीं...
बदलता नहीं किसी का जीवन,
बदल जाते हैं सहयोगी और साथी...
कोई हमदर्द बनने का करता प्रयास
कोई हमराज बन तन-मन और धन लूट जाता है ....
न जाने कौन-सा स्वर्ग पाता होगा,
जो छल कर के धरती से जाता होगा ...

निधि मद्धेशिया
कानपुर

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