Nidhi Agarwal   (निधि ' आर्जवी ')
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Nature lover, love singing and gardening ... Teacher by profession... Poetry is my life.
Joined 16 October 2019


Nature lover, love singing and gardening ... Teacher by profession... Poetry is my life.
Joined 16 October 2019
5 AUG AT 8:15

मेरे साँवरो...

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27 JUL AT 17:39


आई है प्रकृति धरती पर...

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27 JUL AT 16:13

तोसे ऐसी प्रीत लगी , अब और कोई ना भाए
साँवरियाँ बस साँवरियाँ , मन गीत यही बस गाए ,
मन गीत यही बस गाए, सुध - बुध भूली जाए
रोम - रोम पुलकित है ऐसे, ज्यों पुष्प मधुर खिल जाए।

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23 JUL AT 7:32

क्या लिखूँ...?

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20 JUL AT 16:53

मनमोहक मुस्कान साँवरो, वारि -वारि मैं जाऊँ ।
रैन -दिवस बस रूप निहारूँ, मन -मन्दिर तोहे बसाऊँ ।।

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9 JUL AT 21:18

"मनुष्य ने
गढ़े ...
द्वेष , कुरूप, बेरंग जैसे शब्द
प्रेम , सुंदरता और रंग के विरूद्ध
और रच दिया भेद भाव का
एक अपरिमित संसार...
और स्वयं ही फंसता चला गया
अपने बनाये चक्रव्यूह में... "


शेष अनुशीर्षक में पढ़ें...

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9 JUL AT 18:44

मौन...

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9 JUL AT 8:13

मेरे साँवरो...

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6 JUL AT 20:05

मेरे गोविंद...

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6 JUL AT 12:38

ह्रदय कुंज में गुंजित होते
जाने कितने राग,
मधुर मनोहर तान मोहनी
बाँधे मन ही मन अनुराग,

मुस्काने अधरों पर बैठी
हिय में भरती प्राण ,
पुलकित नयन सहज ही बहते
गाते प्रेमिल कोई गान ,

स्वप्निल पंखो में बाँध स्वयं को
माँगूं स्वर्णिम वितान ,
बह जाऊँ पवन के झोंकों संग
पाने को विस्तृत आसमान,

आशाओं ने खोल दिये है अब तो
अभिलाषाओं के द्वार ,
बनना होगा अब स्वयं मुझे ही
नव स्वप्नों का अभिसार।

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