Nida Fazli   (निदा फ़ाज़ली)
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Indian Hindi and Urdu Poet
Novelist, Lyricist, Dialogue writer
Joined 15 April 2021


Indian Hindi and Urdu Poet
Novelist, Lyricist, Dialogue writer
Joined 15 April 2021
27 NOV 2022 AT 22:39

यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता
मुझे गिरा के अगर तुम सँभल सको तो चलो

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26 NOV 2022 AT 22:44

नक़्शा उठा के कोई नया शहर ढूँढिए
इस शहर में तो सब से मुलाक़ात हो गई

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25 NOV 2022 AT 15:07

बदला न अपने आप को जो थे वही रहे
मिलते रहे सभी से मगर अजनबी रहे

दुनिया न जीत पाओ तो हारो न ख़ुद को तुम
थोड़ी बहुत तो ज़हन में नाराज़गी रहे

अपनी तरह सभी को किसी की तलाश थी
हम जिसके भी क़रीब रहे दूर ही रहे

गुज़रो जो बाग़ से तो दुआ माँगते चलो
जिसमें खिले हैं फूल वो डाली हरी रहे

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24 NOV 2022 AT 13:20

एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती हैं शरीक
जिस को भी पास से देखोगे अकेला होगा

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23 NOV 2022 AT 13:44

तुम से छुट कर भी तुम्हें भूलना आसान न था
तुम को ही याद किया तुम को भुलाने के लिए

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4 NOV 2022 AT 21:19

इतनी पी जाओ
कि कमरे की सियह ख़ामोशी
इस से पहले कि कोई बात करे
तेज़ नोकीले सवालात करे
इतनी पी जाओ कि दीवारों के बे-रंग निशान
इस से पहले कि
कोई रूप भरें
माँ बहन भाई को तस्वीर करें
मुल्क तक़्सीम करें
इस से पहले कि उठें दीवारें
ख़ून से माँग भरें तलवारें
यूँ गिरो टूट के बिस्तर पे अँधेरा हो जाए
जब खुले आँख सवेरा हो जाए
इतनी पी जाओ!

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1 NOV 2022 AT 14:28

बस यूँही जीते रहो
कुछ न कहो
सुब्ह जब सो के उठो
घर के अफ़राद की गिनती कर लो
टाँग पर टाँग रखे रोज़ का अख़बार पढ़ो
उस जगह क़हत गिरा
जंग वहाँ पर बरसी
कितने महफ़ूज़ हो तुम शुक्र करो
रेडियो खोल के फिल्मों के नए गीत सुनो
घर से जब निकलो तो
शाम तक के लिए होंटों में तबस्सुम सी लो
दोनों हाथों में मुसाफ़े भर लो
मुँह में कुछ खोखले बे-मअ'नी से जुमले रख लो
मुख़्तलिफ़ हाथों में सिक्कों की तरह घिसते रहो
कुछ न कहो
उजली पोशाक
समाजी इज़्ज़त
और क्या चाहिए जीने के लिए
रोज़ मिल जाती है पीने के लिए
बस यूँही जीते रहो
कुछ न कहो

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31 OCT 2022 AT 13:54

अब कहीं कोई नहीं
जल गए सारे फ़रिश्तों के बदन
बुझ गए नील-गगन
टूटता चाँद बिखरता सूरज
कोई नेकी न बदी
अब कहीं कोई नहीं
आग के शोले बढ़े
आसमानों का ख़ुदा
डर के ज़मीं पर उतरा
चार छे गाम चला टूट गया
आदमी अपनी ही दीवारों से पत्थर ले कर
फिर गुफाओं की तरफ़ लौट गया
अब कहीं कोई नहीं

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23 SEP 2022 AT 12:32

सुब्ह की धूप
धुली शाम का रूप...(नज़्म)














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22 SEP 2022 AT 20:07

सुब्ह की धूप
धुली शाम का रूप
फ़ाख़्ताओं की तरह सोच में डूबे तालाब
अजनबी शहर के आकाश
अँधेरों की किताब
पाठशाला में चहकते हुए मासूम गुलाब
घर के आँगन की महक
बहते पानी की खनक
सात रंगों की धनक
तुम को देखा तो नहीं है
लेकिन
मेरी तंहाई में
ये रंग-बिरंगे मंज़र
जो भी तस्वीर बनाते हैं
वो!
तुम जैसी है

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