मै दुसरो के लिए तब तक अच्छी हूं
जब तक आप मेरे आत्म सम्मान का मान रखते हैं.....-
कुछ खामोशी सी है मेरे इजहार में
न जाने क्यों
शब्दो से कुछ अनबन
सी चल रही है आज कल मेरी .....-
अब मैं आंखों से नहीं रोया करती।।
दुनिया की बेवजह बातों का बोझ
अब मैं इन कंधों में ढ़ोया नहीं करती ।।-
उसे आंखों के भीतर ही रहना था ।...
क्यों बाहर निकल कर दुनिया में तमाशा बन गया तू
जब सब कुछ तूझे अकेले ही सहना था ।...
अपना समझ कर तू जिनके सामने बह रहा था
वहीं दुनिया से जाकर जगह -जगह तेरी पीड़ा कह रहा था ...
अब वो आंखें कहा जो आंसूओं का मोल समझ पाए
हर शख्स फिर रहा है आंखों में अब फरेब छूपाए ....
बेबजह आंखों से गिरकर कर फना हो गया तू
जिसे कीमत तक न थी तेरी
उसके खातिर कितना दर्द सह गया तू...-
ससुराल में पति की जो जगह होती है।
उसी नजरिए से पत्नी को आंका जाता है।।
-
उसकी कला की छाप उसके न रहने पर भी
लोगों के दिलों में जिंदा रहती है।-
का रंग हमेशा बरकरार रहता है।
अगर रिश्तो में समर्पण और सम्मान की भावना हो तो ।-
हम भटके कुछ इस कदर।।
कि अपना हाल उसे ही ना बता सके
जिसके लिए निकल आए थे हम दूर तक।।-