उसे आंखों के भीतर ही रहना था ।...
क्यों बाहर निकल कर दुनिया में तमाशा बन गया तू
जब सब कुछ तूझे अकेले ही सहना था ।...
अपना समझ कर तू जिनके सामने बह रहा था
वहीं दुनिया से जाकर जगह -जगह तेरी पीड़ा कह रहा था ...
अब वो आंखें कहा जो आंसूओं का मोल समझ पाए
हर शख्स फिर रहा है आंखों में अब फरेब छूपाए ....
बेबजह आंखों से गिरकर कर फना हो गया तू
जिसे कीमत तक न थी तेरी
उसके खातिर कितना दर्द सह गया तू...
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