इश्क नू समझण वाले ही जांणदे ने
कि उस मोहब्बत दी मिठास ही वखरी
ते राह किनी की ओखी हूँदिआ
जिथे पता होवे कि महबूब ने एक दिन साड़े कोलों रुखसत हो जाणांआ l
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कुछ तो कमी रही होगी चांदनी में भी
बरना यूं ही चाँद हर महीने अकेले ओझल नहीं होता l-
ये खुदा,
क्यों है तेरा बंदा यूं बेहिसाब पाने का तलबगार
मिला जो थोड़े में सुकून था उसे भी कर बैठा इनकार,
ना मिला जो उसे पाने की हसरत में फना होता रहा
और जो मिला था उसे भी किस्मत ना समझ सका,
चाहा फलक मगर फिसली जमीं भी हाथ से
ख्वाबों की भीड़ में कहीं खो गया अपने ही साथ से-
बहुत रह लिए अदब से तहज़ीब में
अब तेरी सोहबत में कुछ बद-तहज़ीब होना चाहते हैं।
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वो इश्क -ए -गुमान भी कितना खुसूस होता है
कि जहां तलब जिस्मों की नहीं होती
वहां तो रोजाना बिना मिले जिंदगी के कतरे -कतरे
को शरीक -ए -हया की तरह
जीने की ख्वाहिश की जाती हैं l-
क्या करूं 😐
जिसे मैं जानती थी तुम वो रहे नहीं
और अब तुम जो हो उसे मेरा दिल पहचानता ही नहीं l-
हमने खुद को तुमसे कुछ इस कदर जोड़ा है
कि तुमने जब भी बेवफ़ाई की सोची
उसका एहसास हमें नींद में भी हुआ है ।-
इंज तन नालों ता हर एक सुहागन हुंदिआ
पर जिसदी रूह भी सुहागनं होवे
इस जग विच ओह पागांवाली बिरली ही लबदिआ ।-
...... तुमसे मिलके ऐसा लगा तुमसे
मिलके अरमान हुए पूरे दिल के
तुमसे मिलके ऐसा लगा तुमसे मिलके
की तेरा ज़िक्र है या इत्र है
जब जब करती हूँ
महकती हूं, बहकती हूं, चहकती हूं l-