दिल और दिमाग़ के किचन में जो नफ़रत उबल रही है
क्या हम नये साल में मोहब्ब्त की खिचड़ी पका पाएंगे?
क्या हम ख़ुद को बदल पाएंगे..?
आइये एक संकल्प लें
"बदल देना है मुझको"
Happy New Year 2022
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इसमें मेरी ख़ता ही क्या है
जो मुझे ग़लत समझ बैठे,
मैं मोहब्बत से बात करती हूँ
लोग मुझे मोहब्बत समझ बैठे.!-
मुझे पसंद नहीं बेटी होकर बेटा जैसा कहलाना
मुझे पसंद नहीं बहु बनकर बेटी जैसा कहलाना
गर्व हो ख़ुद पर क्योंकि हर रिश्ते की एक पहचान है
बेटा या बेटी होना ये तो बड़े ही गर्व की बात है
लेकिन बेटे जैसा सुनना बेटी का घोर अपमान है
बहादुर है शक्तिशाली है उसके लिए हर काम आसान है
बेटी को सिर्फ़ बेटी सुनना यही बस स्वीकार है
क्यों आशाएं रखती हो कि सास बेटी जैसा समझे.?
क्या तुम्हें बहु होने पर गर्व नहीं या लज्जित होती हो?
ये तो वो ओहदे हैं जहाँ तुम्हें भी आगे बहु लाना है
क्यों सास बनकर भी एक माँ जैसा कहलाना है?
क्या तुम पहले से माँ नहीं जिस बेटे को ब्याही हो?
तुम भी सास-बहु की अनूठी जोड़ी बन सकते हो
लेकिन इस जैसा और उस जैसा में ही उलझे हो
अब समझ सको तो समझ लो इन रिश्तों की परिभाषा
प्यार दो और प्यार लो यही है बस सबकी अभिलाषा
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ये रात फ़िर हमें सोने नहीं देती,
जब भी शिद्दत से उनकी याद आती है;
यूँ बेबस होकर थक हार जाना उनका,
कानों में वही गूंज फ़िर से तड़पाती है;
जाते जाते हम सबसे कुछ यूँ कह जाना,
ये जो तुम वहशियाना हरकत करते हो..
क्या माँ बहनों की याद नहीं आती है..?
क्या हुआ जो हम आधी रात को निकले,
इसके लिए क्या परमिशन मिल जाती है?
ये समानता की दोगली बातें ना किया करो,
अपनी माँ ही बेटों को अंडरग्राउंड कर देती है.!
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मुझे कोई करीब से
पहचान नहीं पाया,
कोई अंधे थे..
और
कोई अंधेरे में थे.. !!
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मुस्काती तस्वीर देखकर जब
आप इतने खिल जाते हैं तो
सोचिए अगर असल जिन्दगी में
सिर्फ़ हँसी ख़ुशी हो तो वाक़ई में
जिंदगी कितनी ख़ूबसूरत होगी
बिन फूल मुस्कुरा उठेगी और घर
भी महक उठेगा लेकिन इसके लिए
आपको हर पल बहाने ढूंढने होंगे
हँसने हँसाने के..!!-
उस इंसान की ज़हालत
कैसे ख़त्म होगी...
जो अपनी औलाद की
तालीम से से ज़्यादा
उसकी शादी में ख़र्च
करना फ़ख़्र समझती है.!
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बहुत से रिश्ते ऐसे भी होते हैं जहां दुनिया वाले शादीशुदा मानते हैं लेकिन दिल से अलग हैं और ना ही पति-पत्नि का रिश्ता है उनके बीच.. लेकिन समाज उन्हें जोड़ी के रूप में देखता है। लेकिन कुछ रिश्ते ऐसे भी हैं जो टूट कर भी जुड़ा रहता है या बिना कोई काग़ज़ी कार्यवाई के क़ायम रहते हैं। कागज़ों पर ख़त्म करने से क्या वो रिश्ता ख़त्म हो जाता है..? नहीं.. बस क़ानूनी तौर पर कुछ मामले मे हिस्से जायदाद रुपयों को लेकर अलग प्रावधान सुना सकता है। ये रिश्ते कभी कागज़ों के मोहताज़ नहीं लेकिन समाज और कानून इसी पर टिका हुआ है।
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"हम 'पॉजिटिव' रहकर ही ख़ुद को 'नेगेटिव' कर सकते हैं। ऐसा नहीं है कि बीमार होने से मौत ही हो भले चंगे का भी दिन फिक्स है तो बस जितना पॉजिटिव रह सकते हैं रहिए "
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आज महिलाएँ हर वो मुक़ाम को हासिल कर चुकी हैं। हर वो ओहदा पा चुकी हैं जो अब ये तो नहीं कह सकते कि महिलाएँ ये नहीं कर सकती हैं। महिला हर जगह अपना परचम लहरा चुकी है लेकिन दिल में आज भी एक ही बात खटकती है, एक बात चुभती है और दर्द भी होता है क्या वाक़ई हमें इतना सम्मान दिया जाता है? अगर दिया गया होता तो आज हर लड़की अपने घरों में सुकून की नींद लेतीं और खुशहाल जिंदगी बिता रही होतीं। अगर वाक़ई वो इस लायक समझी जाती तो यूँ जलाई नहीं जाती ना दहेज की वजह से ना प्यार में पागल सनकी आशिकों के हाथों तेजाब से.. अगर वाक़ई इतनी सशक्त समझी जाती तो यूँ ही उनकी आबरू ना लूट ली जाती। हर पल हर कदम पर भद्दी और अश्लील बातें ना सुनने को मिलती। क्या ये सब सोचने के बाद भी लगाता है कि आज इतनी लड़ाइयों के बावज़ूद उनको सम्मान मिल पाया है या जो उनका हक़ है वो मिल पाया है? यूँ एक दिन ख़ास बनाकर क्या हासिल होना है जो इतने सालों में हमें मिला नहीं..! आज भी उपयोग/उपभोग करने की वस्तु ही समझा जाता है।
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