वो रूठे है हमसे इस कदर की कोई मना ही ना पाएगा, हम टूटे है कुछ इस कदर की कोई संभाल ही ना पाएगा, उसकी चाहत में हम उसके ही गुनहगार हुए है, ख़ुदा जाने वो हमे कैसे माफ कर पाएगा।
कुछ ज़िम्मेदारिया है सर पर जो सोने नहीं देती, कुछ उम्मीदें है ज़िन्दगी में, जो रोने भी नहीं देती। यार बात बात पर इम्तिहान लेती है ये ज़िन्दगी, कोई समझाओ उसे,वो हमे यार जीने नहीं देती।
आज उठाई है कलम तो कुछ तो खास लिखूगी, खुद को मासूका तेरी और दीवानी रात लिखूगी। उस रात में दो कस और होंढो के जाम लिखूंगी, हम जो मुस्कुराए तो उस पर भी तेरा नाम लिखुगी।
एक सक्स जो मेरे सोने से पहले नहीं सोता, मगर कहता है कि तुझे खोने से नहीं डरता। बातों में उसकी साफ सिकायते जलकती है, मगर कहता है कि तुम पर शक नहीं करता।