तुम रह गए हो बस यादों में जिंदा,
कि काश! कभी सामने भी आ जाते।
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प्रेम को पढा गया
लिखा गया
किया गया
और जिया भी गया
परंतु असीमित ही रहा
हर विधाओं में।
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वो कहते थे कि ख़त लिखेंगे तेरे नाम से
मगर ये बात सिर्फ उनके जुबान पर थी
इख़्तियार क्या करते वो ख़ुद पर भी
वासना की सीढ़ी आख़िरी मुक़ाम पर थी
मुक़म्मल कहाँ होता है किसी का प्यार
रूह पर लटकी जिस्म आख़िरी पायदान पर थी।
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सबब दूरियों की देकर देखते हैं,
हक़ीक़त को फिर जी कर देखते हैं,
महफ़िल में गर वाह वाही मची हो
तो एक शाम फिर ठहर के देखते हैं।
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लोगों की फितरत जैसी है वैसी ही रहेगी,
ऐ नादान दिल बेवजह तू परेशान ना हो।।
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तन्हा सफर है पर थमा नही है,
बर्फ बन गया दिल पर जमा नही है,
ठहरती है सांसें तो सुकूँ मिलता,
शायद ये जलजला अभी सहमा नही है।
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पल में बिखेरती है पल में संवारती है,
ये ज़िंदगी कहाँ किसी को तराशती है।
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कोई लम्हा मेरे हिस्से में ऐसा आएगा,
तू मेरा होकर भी मेरा ना रह जाएगा,
तलब नही अब मुझे किसी मकाम की,
कभी सोचा भी ना था कि ये वक्त भी;
रेत कि तरह फिसलता चला जाएगा!!
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