Neha Swaika   (Neha Swaika)
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Joined 19 September 2020


Joined 19 September 2020
6 SEP AT 19:44

मुझे तुम्हारा इंतज़ार तो है,
लेकिन तुम्हारे आने का अधिकार नहीं।
यह दर्द भी अब बढ़ गया है,
शायद तुम आ भी जाओ
तो दिल को पहले सा करार नहीं।

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3 SEP AT 8:25

गुरु
🌺🌺🌺🌺
गुरु ही शक्ति, गुरु ही भक्ति
गुरु ही रक्षक हैं हमारे ।
गुरु के बिना ज्ञान नहीं मिलता
गुरु ही मार्गदर्शन हैं हमारे ।
जब हम मार्ग भटक जाते हैं
गुरु ही हमें मार्ग दिखाते ।
अंधकार मय जीवन जब होता
गुरु ही ज्ञान का दीप जलाते।
जब मेरी नैया डगमग डोले

गुरु ही खेब उसे पार उतारे
सुखे बगियों के कलियों को
गुरु ही सींच कर फूल बनाते ।
इन गुरुओं को नमन करें हम
जिसने हमें सुमार्ग दिखाए।


सभी गुरुजनों को मेरा
कोटि-कोटि प्रणाम
शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
रंजना दास
🙏🌺🌺🌺🌺🙏

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16 AUG AT 21:42

न चाँद अपना हुआ
न तुम
बस स्याह असमान अपना रहा
और कुछ आँखो के टिमटिमाते तारे .....

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16 AUG AT 21:36

मेरे तेरे मिलने से न मैं तुम्हारी हुई, न तुम मेरे हुए।
वो एक वक़्त था, जो साथ हमारा हुआ।
उसके बाद हर हिस्से में बस एक-दूसरे के किस्से बचे।
बस पहचान लेंगे एक-दूसरे को, अब जो कहीं रास्ते का टकराव हुआ।
ना मैं तुम्हें जानती हूँ और तुम भी अब मुझसे अनजान हुए।
वक़्त के पहलू से सिर्फ़ एक लम्हा तेरे नाम हुआ।

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11 AUG AT 23:36

Somewhere I stuck between
*lines*
that call you back to me,
again and again.
I long to turn the page
and read the whole book of life,
yet these lines run so deep,
they feel like
"the very essence of my story."



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30 JUL AT 23:49

मेरी यात्राएं
मेरी यात्राएं सीमित नहीं
उगते - डूबते सूरज की तस्वीर तक
मुझे सिंदरी रोशनी में खोना है
न सीमित है
साफ-सपाट रास्तों तक
मुझे उबर खाबर रहो से गुजरना है
ना सीमित है ,
आलीशान भवनों तक
मुझे खुले आसमान में तारों को घंटों तकना है
ना सीमित है
धुन में बज रहे एक संगीत तक
मुझे प्रकृति की हर ध्वनि में
खुद को सुनना है
मेरी यात्राएं सीमित नहीं
किसी सुंदर स्थान जाकर लौट आने तक
मुझे तो निरंतर
जीवन की आखिरी मंजिल तक
चलते रहना है
यात्राएं करते रहना है ......

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22 JUL AT 21:42

बेसब्री में अब सब्र आ गया है
दूर होते हुए भी
वो नहीं तो कम से कम
उसका फोन आ गया है
बेचैनी अब कहां हुआ करती है
बदलते जमाने को चैन आ गया है
चिठ्ठियों की सुगबुगाहट अब कहां होती है
बस नोटिफिकेशन का दौर आ गया है
कभी "safely reached" का मैसेज
तो कभी , "I am out of sorts today" का
स्टेटस अपडेट आता है
किसी को जानने के लिए मिलना ज़रूरी नहीं
बस दस अंकों वाला एक नंबर आ गया है
चंद सुकून के लम्हों के बदले अब
हर पल की बेचैनी का शोर आ गया है .....

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5 JUL AT 20:36

शनिवार को जब दफ़्तर से लौटे,
तो बस्ते में एक मुट्ठी इतवार भर लाए।
जी भर खेलने की बहार साथ लाए।
हर रोज़ अनमनी आँखें
दफ़्तर जाने को जागती हैं,
मगर आज इतवार की फुर्सत
मन में समा लाए।
भागती-दौड़ती रेस जैसी ज़िंदगी में,
एक ठहरा हुआ लम्हा सहेज लाए।
हम आज लौटते वक़्त,
एक मुट्ठी इतवार भर लाए।

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4 JUL AT 0:30

इमारतें तार-तार हुई ,
उड़ान जो बेज़ार हुई
डोर कसती - कसती ,
छूट-कर लाचार हुई
लिहाज़ा पतंग टूट-कर ,
अब बस शोर में खामोश हुई
पड़ी है बस कोने में ,
कोई पूछे उसका हाल क्या !
बिखरने की खबर सारे जहाँ में हुई ,
अवसाद में है एक दिल छोटा सा
आँसू सूख गए फिर ,
बस आँखें मिचकर लाल हुई .....

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24 JUN AT 23:37

लहरों से छुटकर मैं कहाँ जाऊँगी?
अगर निकली भी तो
तो शायद कहीं सूख जाऊँगी।
बूंदों की कद्र कौन है?
शायद किसी जलधार में
मैं फिर मिल जाऊँ।
क्योंकि मैंने उस लड़की को सुना था
जिसके एहसासों को छूकर मैं अभी-अभी लौटी हूँ।
कहा था उसने कि वो गुम सी हो गई थी, तन्हा
अब जब वो लहरों से मिली,तो बरसों बाद
खुलकर हँसी है
अकेले रहने से बेहतर है किहम भीड़ में ही
खुद को पहचान लें।
लहरों में कोई मजबूरी नहीं, हम उसकी ताकत को पहचान लें
अगर मुड़ना भी हो तो उस घुमाओ में
अपने सुख-दुख को संभाल लें
क्योंकि टूटना,एक मात्रा अंजाम है बिखरने का .....

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