Neha Sharma   (N • S)
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Joined 21 July 2018


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Joined 21 July 2018
4 NOV 2020 AT 0:30

Sometimes life is also about unlearning.

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20 JUN 2020 AT 8:43

कौन कहता है महाभारत का युद्ध सदियों पुराना है? एक और अभिमन्यु साज़िशों के चक्रव्यूह में फँस गया और हमें छोड़ के चला गया।

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23 MAY 2021 AT 0:14

Now how do I start writing for a soul who has always showered immeasurable love upon me? Perhaps love recognises love and that's all I have to give you. I have always learnt a lot from you and will continue doing so till infinity. Your aura, your grace- may everything just keeps increasing as the days pass. I love you to the moon and back and then to the moon again. 🤗 I hold you in my utmost regards. You're a jewel with whom I've formed the most precious bond. Each and every good thing this world has to offer, you deserve all of them. Happy Birthday My Pearlie.❤️💫🥀🌈🌏

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18 APR 2021 AT 0:45

उदासी लिखने से कई ज़्यादा मुश्किल है उदास रहना।

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6 APR 2021 AT 23:24

एकांत से जब सामना हो
वो दरवाज़ा खटखटाती हूँ
तेरी महफ़िल, मेरा इंतज़ार
मैं और भी एकाकी हो जाती हूँ

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6 APR 2021 AT 22:54

उस आँगन से, उस दरवाज़े से
तुम लिखना मुझे खत हज़ार।

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10 FEB 2021 AT 12:10

......

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4 DEC 2020 AT 22:49

मन आजकल अवकाश पर रहता है
उधर शाम ढली और इंतज़ार पर रहता है
राधा सा प्रेम है मीरा सा समर्पण है
भादो चले आओ रेगिस्तान का निमंत्रण है।

याद करो तमाम ग़ज़लें, प्रेम-राग भी तो था
एक हसीं जुर्म था पर ख़्वाब ही तो था
पलकों की दहलीज़ पर भी जाने किसका नियंत्रण है
चंदा चले आओ चकोर का निमंत्रण है।

दिल के विचलित कोने में मैं आस कब तक भरूँ
मैं ख़तों से, तस्वीरों से बात कब तक करूँ
तेरे मेरे सफ़र में कौन सा ये बंधन है
गीत चले आओ, अल्फ़ाज़ का निमंत्रण है।

~न्यमिशा

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3 DEC 2020 AT 8:07

मुद्दतों बाद दिल की देहली पर
ग़म की आज ग़म से मुलाक़ात है।

फिर वही तपिश और दहकती आग सीने में
बाहर क्या ख़ाक बरसात है!

उस कच्चे रंग का करम भी पक्का हो चला है
इश्क़ में जनाब कुछ तो बात है।

तू मुझे सरेआम क्या नाम देगा मेरे क़ातिल
हाँ मुझमे आज भी वो रात आबाद है।

~न्यमिशा

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3 DEC 2020 AT 0:34

बिछड़ कर ख़्वाब में भी
अगली सुबह फिर इंतज़ार होगा
ये तय हुआ था।

ज़िंदगी की कश्मकश में
सितम होंगे, वादे होंगे
पर इल्ज़ाम न होगा
ये तय हुआ था।

मयखाना कोई भी हो
वही जाम-ए-ख़याल होगा
ये तय हुआ था।

फ़ुर्सत से बैठ कर
लम्हे-लम्हे का हिसाब होगा
पर ये फ़ासला न मुकम्मल होगा
ये तय हुआ था।

रास्तों के खारे अँधेरे में
मिठास की चाँदनी मिलकर बाँटेंगे
ये तय हुआ था।

मोहब्बत की पुकार होगी
हर ग़म नज़रंदाज़ होगा
जब हम थे, पर वक़्त नहीं
ये तय हुआ था।

~न्यमिशा

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