चारों ओर ये हाहाकार क्यों है
रोता बिलखता हर परिवार क्यों है
ये माना मैंने कि शासन संभालना आसान नहीं,
अपना अस्तित्व बचाने के लिए सरकार जो कर सके वो करती है,
पर जानें तो जा ही रहीं है
वो शख्स जो गया है अपने घर से,
आज उसके इंतजार में ही किसी की आंखों में नींद तक नहीं है
क्यों ख़ुद की जान से सौदा कर,
आज अपना मुल्क बचेगा
और हार भी गए ,तो ताउम्र एक खोफ रहेगा
ये कैसा मंज़र है ..
आगाज़ करने से पहले सब साथ होते है,
अंजाम होते ही साथ छोड़कर अकेला कर दिया जाता है
क्यों कभी कभी समझोता करना इतना मुश्किल हो जाता है,
कि अपना मुल्क बचाने के लिए हर जवान शहीद होना चाहता है
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जलते चिरागों में अब वो रोशनी कहां..
ढलती श्याम में वो सुकून कहां
यूं तो होते है हर रोज़ दिन-रात
पर जब घर में अपना ना दिखे ..तब वो ज़िन्दगी ज़िन्दगी ही कहां-
क्या अब भी वो समा होगा
जहां ना कोई दूर ना कोई ख़फा होगा..
जहां ना किसी को पाना मुश्किल ना किसी को खोने का डर होगा..
जहां सुबह अपने सामने हो, जहां श्याम में भी अपनों का साथ होगा..
जहां बिना किसी दर्द के बीतता हर पल होगा..
जहां ना जीतने का घमंड ना हारने का दुख़ होगा..
और हारने पर हौसला देने के लिए कोई साथ होगा..
श्याद कभी ऐसा समा होगा....
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दुश्मनी नहीं किसी से,
पर अब सोच मेरी बदल गई ..
गैर से लगते है मुझे सब यहां,
मेरे परिवार के सिवा अपना कोई दिखता नहीं-
रूबरू होना सुकून है ...
ख़्वाब और शोक से अपने
मक़सद-ए-ज़िंदगी बस कामयाब होना तो नहीं❤️
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"ऐसी कोई किताब भी हो"❤️
जहां गम लिखूं तो ख़ुशी मिल जाएं
जहां परेशानी लिखूं तो सुकून मिल जाए
जहां सवाल एक लिखूं जवाब हज़ार मिल जाए
जहां लिखूं मैं दर्द और दवा बेहिसाब मिल जाए..
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मन के हर जज़्बात को गुमनाम कर दिया है मैंने
अपने हर ख़्वाब को आम कर दिया है मैंने
इस रोनक-ए-श्याम की अब मुझको कोई तलब नहीं
ख़ुद को अंधेरों के नाम कर दिया है मैंने-
दुआ करो के अपने सलामत रहें...❤️
वरना गैरो के इस जहान में अकेले रह जायेंगे
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nakamyabi k is daur m..
mehnat ka aashiyana sjaye rkhna ..
tujhse aas na rkhe chahe koi ..
pr tu khud se umeede lgaye rkhna ..-
na jane kitne manzr se guzarna pdta h..
na jane kitne vakt k baad ek aas milti h ..
na jane kitne imtihano ko pass krna pdta h..
tb jakr musafir ko khi ek rah milti h ..-