Neha Sahu   (#nehhu)
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Joined 7 March 2020


Joined 7 March 2020
2 OCT 2023 AT 13:27

बाधाओं से क्या घबराना
बाधायें आनी जानी है।


(नीचे पढ़ें)

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1 OCT 2023 AT 7:28

घर से जब से दूर हुए हम,
कुछ बेबस कुछ मजबूर हुए हम|
जीवन की गुत्थी में उलझे, 
खुद में खोकर चूर हुए हम|

अब चाँद पे बूढी अम्मा नहीं दिखती,
ना दिखते सावन के झूले|
बचपन संग ओझल आंख मिचोली ,
गुम हो गए मिट्टी के चूल्हे|

गुम है बेपरवाह बचपन की मस्ती ,
गुमसुम हैं कागज की कश्ती|
वो चित्रहार -रंगोली गुम है,
गुमसुम हैं बचपन के यारों की बस्ती|

आज गुमशुदा हैं हम कितने?
ये बात बताना मुश्किल है|
क्या खोया क्या पाया है हमनें?
ये गणित लगाना मुश्किल है|

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10 SEP 2023 AT 17:12

टिप-टिप, बारिश है क्या .....या ऑखो से हुई बरसात।
उथल-पुथल, भूचाल है क्या.....या अंतर्मन में उठा तूफान।
इतन सन्नाटा, रात है क्या......या अधरों की खामोशी।
हॉ... ये रात में बारिश के साथ तुफान है।
सवेरा तो खुशहाल होगा ही।
ऑखों में नई किरण, अंतर्मन में नई पवन,
दिन भर कामों में मगन, अधर दिखेगे सबकों प्रसन्न
फिर रात के साथ तूफानी बारिश आयेगी।
ये चलता रहेगा, चलता ही रहेगा........

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29 MAR 2023 AT 8:53

तुम को चाहने लगी थी
अपनी हर चाहत भूलकर तुझ में खो जाने लगी थी
सारी दुनिया तुझ में सजाने लगी थी
तेरी बाहों में सो जाने लगी थी
तेरी चाह को चाहत बनाने लगी थी
तेरे बिना तड़पने मुरझाने लगी थी
तुझे पाकर खुद को भुलाने लगी थी
लेकिन
तेरा गरम लहजा, बदतमीजी,बदगुमालिया सताने लगी थी
तेरी बदसलूकी से घबराने लगी थी
तेरी गालियों की मार से खुद को बचाने लगी थी
सपने, दिल, एहसास सब टूटा था मेरा
फिर भी हकीकत से जी चुराने लगी थी

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24 OCT 2021 AT 22:48

तन्हाइयो की साँकरे जकड़ती जा रही,
हमारी दूरियाँ बढ़ती जा रही,
कभी हम भी थे दिलनशी उनके लिए,
अब कही और नज़दीकियाँ बढ़ती जा रही।

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9 MAY 2021 AT 15:19

सब बोलते है गाती अच्छा हो,
माँ की आवाज है साहिब,
सुरीली तो होगी ही।
माँ के जैसे दिखती हो,
परछाई हूँ साहिब,
हू-ब-हू तो होगी ही।
बुद्धिमान हूँ, कहते है सब,
पहला अक्षर माँ ने सिखाया,
अकलदार तो होगी ही।
माँ-बाप की शान भी कहते है,
कामयाबी में मेहनत तो उनकी थी,
शानदार तो होगी ही।

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4 APR 2021 AT 20:17

आज दर्द से मुलाकात हो गयी,
आँखो से आँसुओ की बात हो गयी,
तड़प, घुटन तो रोज की कहानी है,
नींद न आना, आम बात हो गयीं।
दिलदार से दिल्लगी क्या कर ली,
कमबख्त हर शाम बेजार हो गयी।
कितने खुशनुमा थे वो दिन मेरे,
तन्हाई मेरी सर-ए-दार हो गयीं।
ख़्याल ख्यालो में टूट रहे है,
कल्पना भी तार-तार हो गयी।

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29 MAY 2020 AT 20:13

लिख रही हूँ आज फिर से, दर्द की वो बारिशें,
कुछ सिसकते शब्द मेरे, कुछ तेरी फ़रमाइशें।

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14 DEC 2020 AT 22:26

अकेले क्यों छोड़ गये,
क्या गलतफेमी थी न,
हम हमेसा रहेंगे,
वादा जो किआ था,
साथ साथ चलने का,
फिर वादे क्यों तोड़ गए,
अकेले क्यों छोड़ गये।
ऐसा क्या मिला,
आगे आगे जाकर,
कोई इंतज़ार में थी क्या?,
नहीं, फिर पीछे क्यों छोड़ गए,
अकेले क्यों छोड़ गए।
कितने हसीन लम्हें थे वो,
हाथो में हाथ लिए थे जो,
फिर रिश्ते क्यों तोड़ गये,
अकेले क्यों छोड़ गए।

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8 NOV 2020 AT 23:19

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