To achieve your dreams, you need to chase your goals.
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Love writing traveling
reading,cooking,Bball,khokho,chess 🐺enstein
My home is nowhere... read more
मुसलसल सब कहते हैं, सम्भल कर चलना लोग यहां बेवफा बैठे हैं।
और मैं मुस्का के कहता हूं की वफ़ा की उम्मीद ही यहां किससे है।-
मैं कल लिखूं की
आज लिखूं,
में जीत लिखूं की
हार लिखूं,
में शेष समुंदर की लहरें लिखूं,
की शांत घटा की खबरें कहूं...-
आओ चलो मिलकर भारत को आत्मनिर्भर,
चलो फिर से अपनी जीडीपी को हम सजाएं।
बगल वाले काका के दुकान से, चलो इस बार हम राखी लाएं।
बहन को चुनो इस बार क्यों ना कुछ भारत का ही बना दिलाएं।
आओ चलो मिलकर फिर हम स्वदेशी अपनाएं,
घर-घर क्यों ना हम ही रोजगार पहुंचाएं।
कुछ कर्ज हम भी तो भारत माटी का चुकाएं,
चलो फिर खोए हुए सोने की चिड़िया को हम भारत में वापस लाएं।
क्यों ना वोकल फोर लोकल हम बन जाए,
धीरे-धीरे से ही सही देश की इकोनामी को हम बढ़ाएं।
आओ चलो मिलकर हम भारत को आत्मनिर्भर बनाएं,
चलो फिर से पूरे विश्व में हम सोने की चिड़िया कहलाए।
इस बार दिवाली में लड़ी या नहीं क्यों ना हम सिर्फ दिया जलाएं,
टेक्निकल ब्रांच लेकर कलम तक भारत में ही बनाएं।
चलो फिर से अपनी संस्कृति को हम अपना आते हैं,
भारत की संस्कृति को हम वापस लाते हैं,
चलो फिर से बापू के सपने को वापस जगाते हैं,
चलो फिर से स्वदेशी अपनाते हैं,
भारत को आत्मनिर्भर बनाते हैं।-
आओ चलो मिलकर भारत को आत्मनिर्भर,
चलो फिर से अपनी जीडीपी को हम सजाएं।
बगल वाले काका के दुकान से, चलो इस बार हम राखी लाएं।
बहन को चुनो इस बार क्यों ना कुछ भारत का ही बना दिलाएं।
आओ चलो मिलकर फिर हम स्वदेशी अपनाएं,
घर-घर क्यों ना हम ही रोजगार पहुंचाएं।
कुछ कर्ज हम भी तो भारत माटी का चुकाएं,
चलो फिर खोए हुए सोने की चिड़िया को हम भारत में वापस लाएं।
क्यों ना वोकल फोर लोकल हम बन जाए,
धीरे-धीरे से ही सही देश की इकोनामी को हम बढ़ाएं।
आओ चलो मिलकर हम भारत को आत्मनिर्भर बनाएं,
चलो फिर से पूरे विश्व में हम सोने की चिड़िया कहलाए।
इस बार दिवाली में लड़ी या नहीं क्यों ना हम सिर्फ दिया जलाएं,
टेक्निकल ब्रांच लेकर कलम तक भारत में ही बनाएं।
चलो फिर से अपनी संस्कृति को हम अपना आते हैं,
भारत की संस्कृति को हम वापस लाते हैं,
चलो फिर से बापू के सपने को वापस जगाते हैं,
चलो फिर से स्वदेशी अपनाते हैं,
भारत को आत्मनिर्भर बनाते हैं।-
मैं जिंदगी से बहुत दूर ख्वाब में हूं ,
देख कितना नाराज हूं मैं ।
मैं जमीं से बहुत दूर आसमान में हूं ,
और देख कितना आबाद हूं मैं ।
मैं सरगर्मी से बहुत दूर खामोश सा हूं ,
देख कितना उदास हुं मैं ।
मैं भीड़ से बहुत दूर एकांत में हूं ,
और देख तब कितना लाजवाब हूं मैं ।
मैं समझ से बहुत दूर रहस्यमय हूं ,
और देख कितना मशहूर हूं मैं ।-
आधी जी चुके हैं जिंदगी
अब बस आधा जीना बाकी है
शामें गुजारी है नदियों के किनारे
अब बस राते पर्वत पर बिताना बाकी है
देखे हैं कई परिंदों को आसमा को चूमते
अब बस खुद की उड़ान बाकी है
बाकी है कई ख्वाब मेरे
उन्हें पूरा करने के लिए आधी जिंदगी बाकी है-