खूबसूरत है ये पल जो तुम यादों में हो,
हक़ीक़त में तो सब दरवाजों पे है-
कुछ नहीं है इनमें और गौर से देखो तो मैं हूँ इनमें❤
चाहत थी मगर अधूरी रह गई
दूरी ना जाने कब मजबूरी हो गई,
चाहते तो शायद पूरी हो जाती
मगर शायद अधूरी रह गई...-
मुझको छोड़ बात अपनी बताओ
कैसे गुजारी है रात, अपनी बताओ
यूं तो हर महफिल की हो ख्वाहिश तुम
मगर आज ख्वाहिश अपनी बताओ...-
इश्क़ की ख्वाहिश प्रेमिकाओं को मार देती है
गर वादा शादी का हो, तो कफन तैयार रखती है ।
होना तो वही था जो लफ्ज़ों में नहीं था
ना मौत, ना कफ़न, वो सज़ा ज़िंदगी इख्तियार करती है ।।-
ये दिल कहीं बंजर तो नही
ऐ मौत कहीं ये तेरी दास्तां तो नही,
मैं बिखर चुका हु शाख से
ऐ मिट्टी कहीं ये तेरी गुर्बत तो नही,
है फलसफो में उलझी ये दास्तां अब तक
कहीं ये तुझे बिछड़ने का कारवां तो नही,
सुलझ चुकी हूं बाद तेरे कई हद से
कहीं ये हद से गुजरने की नौबत तो नही,
अब भी कहीं जिंदा हूं मैं दिल तेरे होने से
कहीं ये यादों की जिल्लत तो नही,
अब तो ये हाल है, मैं गुजर चुका हूं खुद से
कहीं ये कब्र तेरी आह तो नही,
बारिश हुई और मिट्टी धूल गई जनाजे से
कहीं तेरे जख्मों ने मुझे छुआ तो नही,
दो सुर्ख़ गुलाब की जरूरत है मिट्टी को मेरी
कहीं मेरे कफ़न में छुपी तेरी तस्वीर तो नही ।।-
सारी दुनियां मिला कर देखी है
तेरी तन्हाई गहरी है
पूरे जंगल को मिटा कर देखा है
तेरी परछाई गहरी है
सारा सन्नाटा मिला कर देखा है
तेरा शोर गहरा है
सारी चांदनी मिला कर देखी है
तेरी रातें गहरी है
सारा त्यौहार मिला कर देखा है
तेरा मातम गहरा है
सारी खुशियां मिला कर देखी है
तेरा गम गहरा है
सारा मरहम लगा कर देखा है
तेरा जख्म गहरा है
सारी तस्वीरें जला कर देखी है
तेरी याद गहरी है
सारा वजूद मिटा कर देखा है
तेरा नाम गहरा है
सारा टुकड़ा इकट्ठा करके देखा है
तेरा निशां गहरा है
और मिटा कर देखा है खुद को भी
कमबख्त नाकामयाबी की बिसात गहरी है-
माँ पे इतने सारे गीत गजल शायरी लिखी गई
पर कभी माँ नही लिखी गई,
ना कोई नज़्म ना कोई गीत
कभी पिरों ना पाई कोई संगीत,
माँ ने ऐसे संभाला , माँ ने वैसे प्यार जताया
पर माँ ने क्या महसूस किया
ये कोई समझ ना पाया,
हम लिखते तो है माँ के बारे में
पर माँ ने क्या लिखा
ये कभी कोई पढ़ ना पाया,
माँ को लिखने के काबिल तो नहीं
पर माँ की लिखावट जरूर बनूंगी
माँ ने खत में क्या लिखा
वो इस बार जरूर पढूंगी...
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