तू क्या है जिन्दगी,
सूखी हैं या हरी
निर्भयता है कभी - कभी,
पर सदा रहती डरी - डरी !
ढूंढ़ रहे सब समाधान यहां - वहां
पता नही वो कब मिलेगें और कहाँ ?
खूब डूबे है मुद्दों मे, समाधानों में
पर जितना चलते है उससे,
आगे ही बढ़ती जाती है ये जहां....
पता नही वो कब मिलेगें और कहाँ ??
©️Neha Rajpurohit✍️
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सीख सिख लेने की मुर्त बना रही हूं !
मैं अपना किरदार निखार र... read more
जीवन-पथ परीक्षा,
पग-पग पर परिणाम ।
जितना ठोकर खा लिया,
उतना गहरा बना आधार ।।
- नेहा राजपुरोहित-
प्रत्येक लक्ष्य का दृश्य मात्र होना ही क्या,
उसके पारदर्शी प्रभावी परिणाम प्राप्त होने का प्रतीक है??
कतई नहीं....!!👇
लक्ष्यों को विकेन्द्रित करना कहीं ना कहीं
स्वंय हमारे जीवन मे
मंजिल को केन्द्रित करने का आधार होता है,
क्योंकि इस मानव जीवन के लक्ष्य के रास्ते में,
बहुत से भावों,प्रभावों,दायित्वों,और
चुनौतियों के समावेशित विश्रामघर आते है
जिनमें हाजरी लगा कर आगे बढ़ना अनिवार्य होता है ।।
अतः विकेन्द्रित लक्ष्यों का अदृश्य होना भी
स्वाभाविक सा लगता है बशर्ते ,
किसी के पास बेवज़ह शाब्दिक-अशाब्दिक
हक ना हो किसी को लक्ष्यहीन और मंजिलविहीन बोलने का ......!!
©️Neha Rajpurohit ✍️-
व्यवहार का द्वार भीतर या बाहर !!
अक्सर समय-समय पर यह लगता है कि ....
व्यवहार जो होता है वह सिर्फ हमारे अंदर से निकलता है लेकिन,
आखिर व्यवहार हमारे अंदर जाता कहां से होता होगा ??
बाहर के वातावरण से और बाहरी लोगों से ,
बाहर के देखे हुए आवरण से और दिखावी कुशलता के आचरण से ,
अनुभवों से और अक्षरों से ,
प्रभावों से और परिणामों से ,
सीखो से और समझ से,
जब सब कुछ इतना बाहर से है तो , यह हमें प्रभावित इतना भीतर तक कैसे कर लेता है ???
आखिर इसका द्वार कहां से शुरू होता है और हमें कहां ले जाता है??
ना पूरा स्वंय का होने देता है और ना ही पूरा दुनिया जैसा बना पाता है !!
क्या एक सही समय पर, सही कुशलता के साथ ,सही व्यक्ति के सामने, स्पष्टता का आवरण ओढ़कर , सटीक रूप से, बात बोल देना ही व्यवहार कहलाता है??
बाहर के लोगों से बातों से ,आवाजों से ,मुलाकातों से , किसी से भी उसके जीवन का कोई लेन-देन नहीं है दूर-दूर तक उसका नाता नहीं है
उसको सिर्फ उन्हीं चार दीवारों में रखा जा रहा है जिसे उसका "घर" और उसके लिए "सुरक्षित घर" कहा जाता है ... जहां पर ना कोई व्यवहार कुशलता है ,ना कोई व्यवहार की समझ, ना परिणाम है ,ना सम्मान है और फिर भी सिर्फ है तो वो है एक शिकायत :- दुनिया वाली दिखावटी व्यवहार कुशलता की कमी , जो उसके सहज और सरल व्यवहार को बार बार चुनौती देती रहती हैं ।।
✍️Neha Rajpurohit
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संघर्ष शब्द अपने आप में कहीं ना कहीं कुछ भारीपन का अहसास करवाता है परंतु सहद्यता से स्वीकार किया संघर्ष सदैव ही जीवन में सकारात्मक चुनौती का रूप धारण कर लेता है।
संघर्ष के मापन का आधार-निर्धारण संभवत लगता है कि सीमित निश्चित मापदंडों के ढांचे में पूर्ण समाहित कतई नहीं हो सकता।.....इसका एकमात्र सर्वविदित और सर्वाभूतित यह लगता है कि संघर्ष प्रत्येक के लिए भिन्न-भिन्न स्थिति और भिन्न-भिन्न मात्रा में होता है...👇
एक बच्चे के लिए टूटे हुए खिलौने को अपनी मां के समक्ष बताना,संघर्ष भरा लगता है।....वही मां-बाप के लिए वैसा पुन: खिलौना खरीद कर ला देना,संघर्ष भरा लगता है।...... वही उस खिलौने को बनाने वाले को खुद का जीवनयापन करना,संघर्ष भरा लगता है....और तो और खिलौने की फैक्ट्री के मालिक को प्रगतिशील लाभ का अर्जन करना,संघर्ष भरा लगता है।
इस जीवन रूपी माटी के खिलौने ही तो हैं हम सब भी !! माटी के कण-कण में संघर्ष ढूंढ लेते हैं बस इस कण-कण,कदम-कदम पर सहद्यता को / सहजता को संभव स्वीकारने को साध ले अगर तो....
संघर्ष और सुकून,
संघर्ष और सफलता,
संघर्ष और सहजता में
दूरी स्वत: ही समाप्त हो जाएगी।.....स्वत: ही।।
💫दोहरी पट जीवन...एक पट समझे संघर्ष वहीं दूजे पट सहज ...!! 💫
संक्षिप्त शब्दारोपण का प्रयास....🙏
- Neha Rajpurohit-
सुकून के पल, स्वंय संग भीतर जीए
मानो अरसा हो गया हो ।
कदमों की निरंतरता में , राह स्थायी पकड़े
मानो अरसा हो गया हो ।
कलम को पन्ने की , मुलाकात संग बैठे देखें
मानो अरसा हो गया हो ।
हवाओं में जीवन के , अहसासों को अनुभूत किये
मानो अरसा हो गया हो ।
अंधेरे में उजाले की , एक किरण को साधते समझे
मानो अरसा हो गया हो।
आसमां के उलझे बादलों में, सपनों का चित्रण बनाएं
मानो अरसा हो गया हो ।
भावनाओं के बहाव को , शब्दों के ठहराव देने का प्रयास किये
मानो अरसा हो गया हो ।
©Neha Rajpurohit
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लड़खड़ाते-टहलते कदमों ने ,
कैसी राह पकड़ा दी ??
मंजिल छुटी, दूरी बढ़ा दी !
कुछ आंशिक, कुछ पूर्ण समझा दी ।।
- Neha Rajpurohit-
बस यूं ही बैठी.....!!
©Neha Rajpurohit
((Read in Caption👇))
— % &घुमा फिरा के बात करना और व्यवहारिकता का नाम देना तो कहते हैं दुनियादारी का सबसे पहला आदर्श बना चला आ रहा है परंतु ,
वो तो भाई ! नवप्रवर्तन का झूला झूलती है क्योंकि क्या है ना, इस झूले से तालमेल बढ़ा सही बैठा हुआ हैं उसका और उसके जैसे बहुतों का ।
खैर ! यह झूला समय की रफ्तार से घूमता है और परिवर्तनों की दोनों तरफ की रस्सिया मानो उसके हाथों में ही थमी होती है .....तो, जब ऊपर की ओर बढ़ती है तो भी खुशी महसूस होती है , वापस नीचे की ओर आती है तो भी संतुष्टि महसूस होती है और पुनः समांतर छलांग लगाती है तो भी गर्व महसूस होता है । — % &इस झूले का साथ कभी आराम से जीवन की परिस्थितियों में झूलते हुए जरूर शब्दों में बयां करने का प्रयास करूंगी!!
वैसे तो शब्दों के बीजों से सुंदर पेड़ पनपाने में , लहराने में ...वक्त और अनुभव की कला काफी महसूस होगी मुझे ! लेकिन ....
विश्वास रूपी पानी और उम्मीद रूपी मेहनत इतनी संभाली है कि, बाकी कलाओं को भी हरी भरी पतियो से लहराता पेड़ और फूल-फल से लबालब डालियों में परिवर्तित होना ही होगा !!— % &........लिखते समय पता ही नहीं लगता भावों का प्रवाह कैसे बहने लग जाता है ।
वैसे तो भाव स्वंय ही ऐसी नदी है कि ,
जो अपना प्रवाह का प्रस्थान और इतिश्री
अनंत रखते हुए अपने ही भावों में डोलती हुई रास्ता बनाती , मुड़ती, झूलती, बहती ही चली जाती है।
मेरे आज के भाव शायद मेरे पर ही राह चुन लिये है मेरे पर ही का मतलब मैं... लड़की...औरत.... स्त्री !! — % &सोच रही हूं कि आज पूछ ही लूं- स्त्री धर्म से कि इस स्त्री जाति में तुझे तुझसे क्या चाहिए??
मन कह रहा है कि (कुछ मतलबी होकर) :- थोड़ी सुकून भरी स्वतंत्रता (जो स्वयं के निर्णय में महसूस हो सदैव )और भरपूर आत्मविश्वास (जो लबालब रखें मुझे स्वयं द्वारा प्रस्तावित निर्भरता के संसार में)।।
मस्तिष्क कह रहा है कि (बिना कोई चिंतन करें) :- आत्मनिर्भरता (निर्भयता से ऊपजी) और
खुली खिलखिलाहट (बिना रोक-टोक के) ।।
यह सब चाह तो संभवत: प्रत्येक स्त्री की होगी ही, इतना तो मैं प्रतिनिधित्व की भूमिका में समाहित होकर पूर्णत: निर्भीक होकर स्वीकार कर ही सकती हूँ । — % &
इस मन और मस्तिष्क दोनों के ही उत्तर में कुछ एक समानता बिल्कुल है जो सबकी आधार है और वह है - "सहजता".... "उसकी सहजता' ।
सहजता तो प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में चाहता है और वह चाह ही , मांग में बदलकर जीवन की बहुत सी परिस्थितियों को जन्म देकर स्वयं उन्हीं में उलझ भी जाता है और नाम दे दिया जाता है समस्या का ....जीवन की परेशानियों का !!
©Neha Rajpurohit— % &-
आप हमारे नाथ!! 🙏
हमें आपकी ही
भक्तमाल मे शामिल
होने का सामार्थ्यवाद
आशीर्वाद देकर ,
शक्ति - शीतलता से
सरोकार भर
आपके चरणों की
रज्ज का कण भर-सा
का सौभाग्य प्रदान करे ।।
🙏ॐ नमः शिवाय🙏
©Neha Rajpurohit
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