मेरी कमी को देखा है सबने मुझे पसंद करते नही हैं अपने ये जिंदगी का दौर बड़ा अजीब है हर जगह मौजूद हैं छोटे छोटे सपने कभी टूटते तो कभी बिखरते, फिर भी खुद को अभी संभाला है हमने।
जज्बातों ने बदला ऐसा रंग, की मैं घबरा गई....... बोलाना मुझे भी था बहूत कुछ , फिर न जाने क्यों मैं शरमा गई? शायद वो मेरे संस्कारो की परीक्षा थी इसीलिए मेरी जुबान को , खामोशी ही पसंद आ गई।
कहती रहती हुं मै अक्सर अपने दिल की बात, फिर ना जाने क्यों मिलती है मुझे वो मायूसी ? बदले में.....जैसे हो कोई सौगात। अब पूछे मेरा ही दिल ये बार-बार, क्यों सोचती रहती हुं मै, हर बार बस एक ही बात?