Neha mishra   (Neha mishra)
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Joined 23 April 2019


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Joined 23 April 2019
16 MAY 2022 AT 22:31

तुम मेरे लिए उस अंक की तरह हो जो दशमलव के बाँयीं तरफ है,
दायीं तरफ का हर अंक तुमसे छोटा है।

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9 MAY 2022 AT 12:19

तुम वो एहसास हो जो सर्वव्यापी है।
माँ, तुम सिर्फ माँ नहीं, मेरी छठी इंद्रिय हो।

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6 MAY 2022 AT 0:30

कि तुमने ही बान्ध रखा है मुझे उस अदृश्य ताकत से जिसे मै मोह कहती हूँ।
हाँ, तुम हो मेरे आकाशगंगा।

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24 MAR 2022 AT 13:28

You left your home.
He made you his home.
It's not always about a woman. It's more often about a man as well.

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21 MAR 2022 AT 1:42

सूरत अक्सर साफ सी होती है,
जो सीरत अपनी स्याह लिए फिरते हैं।

अल्फाज बड़े नाज़ुक से होते हैं,
जो अन्दर दिलों के दिमाग लिए फिरते हैं।

मिसालें जो दे पाकबाज़ फितरत की,
असरार हज़ार बेबाक लिए फिरते हैं।

बेखयाली सा मिज़ाज लिए दिखते जो,
जेहन में कई ख्याल लिए फिरते हैं।

परदे लटकते हो घरों में जिनके,
आबरु वो भी दागदार किए फिरते हैं।

अंधेरा हो जिनकी गलियों में अक्सर,
मशालें वो ही बेजान लिए फिरते हैं।

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16 MAR 2022 AT 0:05

शब्द अंगार से फूटने को ही हैं,
मन सरल जल सा शीतल ठहर जा रहा।

युद्ध की ये घड़ी भी अनायास है,
द्वंद्व कुछ इस तरह से कहर ढ़ा रहा।।

द्वार दीपक जले, जल के बुझने को है,
हर तरफ अंधियारा पसर जा रहा।

जो कहा तब था कि लौट आने को है,
बस इसी आस में मन शहर जा रहा।।

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26 JAN 2022 AT 19:28

मुख़्तसर कोई मुलाकात हो तो लिख दूँ,
तूझसे जुड़ी कोई बात हो तो लिख दूँ।

आँखों में चूभते इन आंसुओं से पूछो,
इनके बगैर कोई रात हो तो लिख दूँ।

तू आए ना आए, तेरी याद हो तो लिख दूँ,
तू कहे ना कहे, तेरे अल्फ़ाज़ हो तो लिख दूँ।

अगाध समुन्दर से ये जज्बात मेरे,
लफ़्जो के इस नदी की कोई औकात हो तो लिख दूँ।

मेरे ख्यालो में, ना तेरा ख्याल हो तो लिख दूँ,
मेरे लफ्जों में तू नहीं, मेरी ऐसी मजाल हो तो लिख दूँ ।

तू बादलों सा है, मैं बूंद उन बारिशों की,
तेरे बिना बरस जाऊं, ऐसा कोई सवाल हो तो लिख दूँ।




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6 JAN 2022 AT 9:33

वक्त से, कुछ वक्त में, हाँ मिल गया जो वक्त था,
तब यूँ लगा जो था मिला वो वक्त भी बेवक्त था ।
अब वक्त है, वो शक्श है, पर है नहीं जो वक्त था,
बेवक्त ही ये समझ आया कि सही वो वक्त था ॥

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11 AUG 2021 AT 19:33

दास्तान - ए - इश्क की ख्वाहिश है तुमको,
मैं तो मेरी कहानी तुम्हारे नाम किए बैठी हूँ।

लफ़्ज़ों में जो बयां करूँ इक दरिया सा है बस,
मैं तो मेरा समुन्दर तुमपे कुर्बान किए बैठी हूँ।

यूँ तो रंगों की मोहताज़ नहीं है ये दुनिया मेरी,
पर तुम बिन बेरंग है ये सरेआम किए बैठी हूँ।

अब भला किस अजीज को ताक पे रखूँ मैं,
तुम पर तो मैं अपना ये जहां नीलाम किए बैठी हूँ।

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12 MAY 2021 AT 14:44

दूरियाँ यकीनन तुमसे मीलों की हैं, बस दूर ही तो नहीं हो तुम।

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