शीर्षक..श्वानों की पुकार.
ना रोटी छीनी, ना चैन माँगा, ना दौलत माँगी, ना शौहरत माँगी।
बस एक कोना माँगा था प्यार भरा, जहाँ मिल जाए थोड़ी सी छांव जरा।
गली में पला, मोहल्ले में जिया, हर चेहरे को अपना समझ लिया।
आज वो ही चेहरों से डर लग रहा है, हर कोई हमें यहाँ से भगाने चला है।
आँखों में आँसू हैं, घर खो जाने का डर ,क्या बस इतना होना ही मेरा मर्म? ना कोई जुर्म किया, ना कोई खता, फिर क्यों मिल रही है ये सज़ा?-
शब्द शब्द सब कोई कहे, शब्द के हाथ न पाँव
एक शब्द औषधि करे तो एक शब्द करे सौ घाव !-
मुझसे किसी ने कहां...तुम स्त्रियां ही शिव को इतना क्यों मानती हैं...तो मैंने कहा स्त्री का सम्मान केवल शिव ही करना जानते हैं... तभी तो गंगा माता को शिव जटा में सजाते हैं।।
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नकारात्मक लिखतीं हूँ तो लोग कहेंगे दुःखी आत्मा है,
सकारात्मक लिखतीं हूँ तो कहेंगे बेवजह ज्ञान सिखा रही है... आ गयी ज्ञान देने .. इसलिए मैं लोगों की प्रतिक्रियाओं की परवाह किए बिना हमेशा वही लिखती हूँ जो मेरा अंतर्मन कहता है...!!!-
अपने किरदार पर वफादारी का लिबास रखती हूं
मैं खुद भी खास हूं और दोस्त भी खास रखती हूँ .-
भाषा हूँ मैं धर्म हूँ मैं कृति हूँ, कर्म हूँ मैं व्यथा हूँ मैं,
मर्म हूँ मैं झिझक हूँ मैं, लज्जा हूँ मैं शर्म हूँ मैं
कठोर हूँ मैं, नर्म हूँ मैं हाड़ हूँ मैं चर्म हूँ मैं शीतल हूँ मैं,
गर्म हूँ मैं, शुद्ध हूँ मैं परिष्कृत हूँ सरस हूँ मैं सजीली हूँ मैं,,
प्रेम हूँ मैं क्रोध हूँ, जज़्बात हूँ मैं अल्फ़ाज़ हूँ मैं, सहज हूँ मैं
सुगम हूँ मैं, चक्षु हूँ मैं अश्रु हूँ मैं, भाव हूँ मैं स्वाभाव हूँ मैं,
अपर्ण हूँ मैं दर्पण हूँ, श्रृंगार हूँ मैं सार हूँ मैं, तर्क हूँ मैं फ़र्क़ हूँ मैं
विचार हूँ मैं संचार हूँ मैं, परिभाषा हूँ मैं अभिलाषा हूँ मैं,
माँ के मस्तक की बिंदी हूँ मै ,ह्रदय में उठतीं प्यार की दस्तक हूँ मैं.,
देव की मधुरिम रस विलास हूँ मैं ,महादेवी के कलम की कोख से निकली विचारों की गहराई का सागर का हूँ मैं ,शिव पार्वती की तपस्या और प्रतीक्षा की कहानीकार हूँ मैं.,
राधा कृष्ण की मधुर रूपी अटटू प्रेम की गाथा हूँ मैं ,
सीता राम के अखंड त्याग की कथा हूँ मैं..
अमृता इमरोज़ के विरह की वेदना हूँ मैं.,
धड़कन हूँ मैं तड़पन भी हूँ मैं ,
संवेदनाओं की उदार हूँ मैं वात्सल्य का भंडार हूँ मै .,,
हिन्दी सभ्यता संस्कृति की वाहक हूँ मै ,
संस्कारों की उपवन हूँ मैं.., हिन्दी हूँ मैं...-
कभी कभी किसी के छोड़ के जाने से हम टूट जाते है पर टूटने का ये मतलब नहीं कि सब कुछ खत्म हो गया,
कभी कभी टूटने से ज़िंदगी की नई शुरुआत भी होती है...-
किसी तिथि, स्थिति
प्रस्थिति का मोहताज़
नहीं.....
जन्म-जन्मांतरों की प्रतीक्षाओं
का जश्न है प्रेम ! ✍️-