जहां पहली कलि चटकेगी और ओस मोती सी दमकेगी हार सिंगार झरेगा...और धूप बचपन सी खिलेगी जहां खुशबू लिए बयार बहेगी पेड़ों से कुहासे की चादर हटेगी और..आसमां के छोर पर संतरी सी आभा खिलेगी घंटे की गूंज से गूंजेगा ये गगन मोर के गीत होंगे और होंगे कन्हैया के चरण.... बांसुरी के सुरों में डूबी होगी... एक सुबह.. ऐसी ही होगी..जो मेरे हिस्से में होगी...
विष का प्याला जो पिया प्रेममयी मीरा ने तो... विष को अमृत कर प्रीत निभायी.. कान्हा ने मैया यशोदा हो, राधा हो या फिर हो सुदामा सूर हो,मीरा हो,नरसी हो या फिर हो श्री दामा निसंदेह प्रेम ने भाव और स्वरूप बदला है फिर भी हर युग में प्रीत निभाई ..कान्हा ने