अहाँ,
भरि राति
सैकड़ों स्वप्न देखला बाद
भोर होयबा सँ पहिने
सभटा सरिया क' एक करबाक
हलदली बला
अवस्था जकाँ छी
जकरा व्यवस्थित करबाक
प्रयास मे लागल हम।
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बावरा मन आज भी जुगनुओं के पीछे भागता है।
रात भर न... read more
प्रतीक्षा करती
आँखों के नाम
मैंनें पत्र में लिखा
"धैर्य"
जो घुल रही वहाँ ठहरे
चंद बूँद आँसुओं में
जहाँ आज भी बची है
कुछ बचा सकने की उम्मीद
खालीपन की पीड़ा से
बेहतर है
कुछ भी बचा रहने का भ्रम ।
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हम जखन चाहैत छी
अहाँ बस्स वैह क्षण
आबि जाइत छी हमर
स्मृतिक छाहरि त'र
ककरो पर एतेक अधिकार
कोनो की क'म छैक!-
अंतिम भेंट
कोनो बेजाय नहि छल
घुरती काल सनेसक पोटरी मे
अहाँ बान्हि देने रही
संदेहक पकबान
दू बुन्न नोर
आ किछु बिछोहक पांति
घर पहुँचैत धरि
गढ़िये जायत एकटा
क्षणिका!
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कहीं दूर चलो ना
यहाँ शोर बहुत है
इश्क़ के दुश्मन
हर ओर बहुत है
जब रात होगी निढ़ाल
चाँद उफ़क़ पर
कर रहा होगा
विश्राम
तुम दीये की
जर्द रौशनी में आना
इज़हार-ए-अल्फाज़ लेकर
मैं अपने सर्द
एहसासों को
सेकूँगा
तुम्हारी सुलगती
धड़कनों पर
हाथ रखकर।-
अहाँक सुख आ
हमर सुखक आशय
बाँटल छल
मुदा
नोरक सुआद
एक्कहि होयब
रहरहाँ करैत रहल
हमरा
चकविदोर।
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कुछ स्मृतियों का
स्मृति में रहना ही
ठीक है
क्यूँकि ना तो वो
यथार्थ हो सकती
और वर्तमान को भी
अपने वश में करने में
अक्सर सफल हो जाती
और हम अपने यथार्थ
सुख से वंचित रह जाते
बेहतर है स्मरण रखें
कवि की पाँति,
"जो बीत गई सो बात गई"।
नेहा झा मणि
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मिलावट के
इस दौर में
विशुद्ध प्राकृतिक
और कुछ भी नहीं
तुम्हारे
प्रेम के अतिरिक्त।-
प्रेम का प्रतीक है
गुलाब
प्रेम के ब्रह्म रूप हैं
कृष्ण
तभी प्रेमिकाएं
प्रेम में या तो
गुलाब हो जाती हैं
या कृष्ण।
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एक बात कहना चाहूँ,
नदी सी बहना चाहूँ।
भीड़ है मेरे भीतर पर,
संग तेरे ही रहना चाहूँ।
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