असीर-ए-ज़ब्त थे क़फ़स जिस्त मे हम,
मिलना तेरा क्यूं रिहाई लगा,
पैगाम था वो मोहब्बत का मेरी,
जो चंद अल्फाजों मे लिपटा स्याही लगा।
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Love to write love to Express.
I love to exhale m... read more
कुछ मनाज़िर संग उसके यूँ धुंधले से नजर आते है,
जैसे किसी लम्हे में मेरे बहुत करीब था वो।।-
नकाबों में रखा है जमाने के आगे ,
हकीकत से खुद की में डरती रही हूं,
तजुर्बो से मैंने है सीखा बहुत कुछ,
कोशिश नई हर बार करती रही हूं,
न टूटी हूँ मैं न हौंसले हैं मेरे ,
मेरी हार से हर बार मुकरती रही हूँ ,
किससे है रोशन जिंदगी ये मेरी ,
जो अंधेरों में उजाले भरती रही हूँ ,
है जवाब वो ही गर मेरे हर प्रश्न का तो,
फिर क्यूँ सवाल खुद से मैं करती रही हूं।।
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ना -तवां न होना मसाफ़तों से,
गर हम मिल ही न पाए कभी,
फ़ासला राहों मे था,जो रहा
दिलों में नहीं.....
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पायाब से ही थे वो मरासिम सारे ,
जिन्हे नायाब समझने की भूल की थी..-
उम्र किस लिहाज़ से तू बढ़ रही है आगे,
ये मन तो तेरे साथ चलता ही नहीं है,
करती है तू कोशिश बहुत इसे अपना सा करने की ,
पर ये तो तेरे रंग में कभी ढलता ही नहीं है,
रोज़ कहता है कि ना दे तू मुझे उम्र के तकाज़े,
क्यूँ थामूं मैं ख्वाईशें मुझे इतना तो बता दे ,
अब तू ही बता कैसे करूं काबू मैं इस मन पर,
मुझसे तो ये अब और संभलता ही नहीं है।-
हवाओं के रुख बदले हैं अभी की दस्तक वही पुरानी सी है,
न सोच कि कुछ हुआ है नया ये जिंदगी दोहराती वही किस्से कहानी सी है"
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"वक्त ने तराशा है इस कदर,
खुद की कीमत का अंदाजा हुआ,
पत्थरों में तलाशा करते थे खुद को कभी,
आज हीरों से भी मोल ज्यादा हुआ"-
ख्वाहिशें पंख फैलाती सी,
जागती रातों में आंखों को सताती सी,
है कभी पूरी कभी अधूरी सी,
कभी रूठती कभी मनाती सी,
ख्वाहिशें पंख फैलाती सी ....
कभी मुस्कुराहट बन होठों पर सजती हैं,
कभी बन आसूँ पलकों से बिखर जाती सी,
ख्वाहिशें पंख फैलाती सी,
वक्त बेवक्त मन को घेर जाती हैं ,
न पूछती है पता ना बताती हैं,
हर घड़ी मेरे सब्र को आजमाती सी,
ख्वाहिशें पंख फैलाती सी......-