Neha Bhavsar  
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Joined 17 July 2017


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Joined 17 July 2017
9 APR 2022 AT 7:10

प्रिय गृहणी

खिड़की से झाँको यदि
तो तुम्हें चिड़िया दिखे बाहर
खिड़की पर पड़ी धूल
उतनी ना दिखे की चिड़ियाँ के पंख ना देख पाओ।

भोजन उतना ही बनाओ
की तुम्हारी खीज और थकान
खाने वाले को व्यथित ना कर दे।

स्वाद उतना ही हो कि
शांत मन से खाया जा सके।

तुम जब कड़ाही में कड़छी चलाओ
तो उतनी ही तल्लीन होना की
रोते शिशु को सारा काम रोक
अपना आलिंगन दे पाओ,

भोजन परोसो जब
तो भोजन में व्यंजन उतने ही हो
की प्रेम से परोसे जा सकें।
त्यौहार जब आये घर में
उनके आगमन की प्रसन्ता
तुम्हारी चिंताओं से ज्यादा रहे,

बर्तन माँझते समय,
तुम उन्हें उतना ही घसना
की उसके कोलाहल से कोई नींद ना टूटे।

उतनी ही कुशल होना की तुममें हमेशा कोई कमी रह जाये...

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17 FEB 2022 AT 13:42

मैंने स्वयं के लिए ठगा जाना चुना मैं तुम्हें शापित देखना चाहती थी।

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17 FEB 2022 AT 13:35

ज़हर भीतर जाए तो या प्राण निकाले
या असर ना करे।






तुम कभी पूरे मेरे नहीं हुए
ये जानते हुए की आधा होना
कितना जानलेवा हो सकता है।

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8 FEB 2022 AT 8:03

श्रद्धा की सीढ़ी उतर डूबा जाता है प्रेम में। ईश्वर के होने का कोई निश्चित स्थान नहीं है...

तुम जल में पाँव रखने पर उस जल से भी क्षमा मांग सकते हो।

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4 FEB 2022 AT 22:45

संभावनाओं के पुल पर यदि तुम आख़िरी फ़ूल हुए तो जीवन भर के लिए मुझे धूप होना है...

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8 JUN 2020 AT 13:50

पोहे संग जीरावन हो,नींबू संग रहे प्याज
मिलजुल कर सब खाइये,पूरे होंगे काज।।

सेंव में पोहा मिले या पोहे में सेंव|
भर भर दोना खाइये,जागे सबके देव||

आलू छोटे काटिये,पोहा रखो भिगाये
प्याज, मिर्ची,सौंफ़ से पाछे छोंक लगाए।।

पोहे की दुनिया भली,भला है उसका देस
हल्का फुल्का खाइये,नहीं बनेगी गैस।।

पोहा अपना राजसी,ठाठ बाट से खाये
साथ जलेबी राखिये परमानंद आ जाये।।

जात ना पूछो साधु की पोहा जिसके पास,
नींबू निचोड़े वो जिन्हें हरि मिलन की आस

संतोषी का एक गुण घर में पोहा खाये,
ना जाने किस भेस में नारायण आ जाये।।

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24 JAN 2019 AT 19:59

जैसे वो आया अपनी मर्ज़ी से
और गया भी...
जैसे साँस आती जाती है,
उसे जाने दिया मैंने

फिर लौट आने के लिए...

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2 JAN 2019 AT 7:11

कौन कहता है जाने वाले लौट आते हैं,
गुज़री सहर तो फिर कभी नहीं आती

इतना रोया हुँ की अब चुप हुँ तो चुप ही हुँ मैं,
देर तक अब हँसी नहीं आती।

ज़िन्दगी इस तरह से उठ के गयी है मेरी
साँस कम है लेकिन मौत भी नहीं आती।

उसकी आँखों में घर बनाये थे,
रास अब कोई सरज़मी नही आती।

बिछ गए थे जिस डगर पे सर ए राह होकर
कोई राह उस डगर से अब नही आती।

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13 DEC 2021 AT 10:37

तुम ऐसे प्रतीक्षा करो कि उसका आना तुम्हें पीड़ा दे जाए...

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6 NOV 2021 AT 21:30

मैं बहुत बरस ख़ाली रही तुमसे
मेरी हथेली पर दुआ उग आयी है...

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