ग़र.... लग जाए,
मेरी भी उम्र उसे,
कोई बड़ी बात नहीं होगी,
मियां....मिलना,
ना मिलना...
ये तो...क़िस्मत का खेल है,
ग़र हुई जुदाई भी,
तो फिर भी....
मैं उसकी ही रहूं....और
वो मेरा ही रहे......
ये बड़ी बात होगी ।
-
मेरे दिल के किसी कोने में दफ़न,
जख्मों को न कुरेद.....ऐ ज़िंदगी,
कहीं ऐसा ना हो,
ज़ख्मों पर मरहम लगाते लगाते,
मैं ही इस जिंदगी से फना हो जाऊं-
आंखों से जब छलक आए नमक,
रुखसार का समंदर होना तय है,
कभी देखा है..... क्या
बारिश स्खलित हो और धरा प्यासी रहे ।-
ज़रा गौर फरमाइए गा......
नशे में हूं मैं,
इक अजब सी खुमारी छाई है,
नशे में हूं मैं,
इक अजब सी खुमारी छाई है,
मैं......और मदिरा,
अमां...... कहां, जनाब
छोड़ो.....
चाय की तिश्नगी के आगे,
क्या मय और क्या मय का सरूर,
सब फीका है जनाब.....
सब फीका है ।
-
कमबख्त इश्क,
बेदर्दी बड़ा,
छ्लनी कर दिल मेरा
पूछे.....
इसमें....मेरी क्या ख़ता ।
आंसुओ से लबरेज,
रहती है आंखें
ना इक पल कभी,
सकूं का जिया,
फिर.... इश्क, पूछे
इसमें....मेरी क्या ख़ता ।
तन्हा- तन्हा से रहते है,
ना कुछ भाता है, मन को
किसी की चाहत में,
ये दिल है तड़पे बेइंतहा,
फिर.... इश्क, पूछे
इसमें....मेरी क्या ख़ता ।
इसमें....मेरी क्या ख़ता ।-
सजाई,
जो मैंने....कालिख़,
इन नैनों में,
आंखों में बसी,
इक...तस्वीर
उनकी को,
हमसें शिकवे...
बेहिसाब हुए ।-