चलो चले महाभारत के उस काल मे
देखे जरा मां कुंती थी किस हाल मे
वरदान मे मांगा था जब सबने सुख
माता ने मांगा था केवल दुख
जब बारी आई त्याग की
माता ने त्यागा अपना पुत्र
देखा था र्कण का बलिदान तो सबने
पर माता ने भी खोये थे सब अपने
कष्ट देख मां कुंती का
लगे थे माधव के भी अश्रु बहने
विवाह हुआ जब योग्य पति से
साथ छूटा उनका भी दुर्गति से
तब भी मुस्कान थी माता के होंठों पर
क्योकि नाज़ था उनको अपने बेटों पर
याद करो उस अग्नि को जो लाक्षागृह में लगाई थी
अपनी कुलवधु की इज्जत पर वो कैसी विपदा आई थी
सोचो कैसा था उस मां का कलेजा
जब रणभूमि मे बेटो को भेजा
हा मिली थी अंत मे जीत धर्म को
पर खोया था मां ने भी र्कण को
अंत मे राजपाट पुत्रो को थमा गई
स्वयं गई वन को और अग्नि मे ही समा गई
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