वतन कि खातिऱ जो शहीद हुए
लेके स्वन अखंड भारत का
कंहा है आजादी आज वो
दफ्न हो गए हँसते-हँसते
मिला क्या उनकी कुर्बानी को
बताया हमें 1947 को मिली आजादी
कंहा है आज आजादी वो
स्वाहः कर अखंड भारत का सपना
प्रवाह हो रहा हो जंहा अंग्रेजियत के Indian का
फिर कैसे मानूं ये देश आजाद हैं
जंहा कि हवा आज भी अंग्रेजियत कि गुलाम है
खाना,कपडा अपनी भाषा को दफ्न कर दिया
युवा भाषा के कारण आज नौकरी तक को मोहताज हो
अंग्रेज है अफसर और हम जाहिल-गवार हो
नंही मानती एसी आजादी को
जंहा अपनी भाषा से हि हो जाता अपमान हो
जंहा आज संस्कारों को समझते पिछड़ा और पाखंड हो
फिर कैसे मानूं ये देश आजाद हैं
जंहा कि हवा आज भी अंग्रेजियत कि गुलाम हो
सुनाये जाते जंहा हमे झुठे किस्से
मिल जाती आजादी जंहा मात्र चरखे से हो
गर इतनी सरल होती आजादी तब चलता चरखा हर घर-घर में वो
क्यों नंही सुनाते कितने वीर थे वो
जो हँसते-हँसते लटके थे नौजवान जो
कितनी गौरवशील रही होंगी वो माँ जिसने जन्मा ऐसे पुतों को
अरे क्यूं नंही सुनाते वो वो किस्से
जिसके बच्चे बदूंके बोते खेत-खलियानों मे हो
नंही बताते वो किस्से जंहा खूब लडी मर्दानी जो
जंहा एसी देश कि नारिंया हों
फिर कैसे मानूं ये देश आजाद हैं
जंहा कि हवा आज भी अंग्रेजियत कि गुलाम हो-
मैं क्या बयान करुं हाल-ए-जमाने का
कुछ फरिश्ते शमशानों पर महल बनाने आये हैं
जहां दफन हैं चींखे लाखों मगर गुलिस्तान का सपना नया सजाये है
क्या बताऊँ इस जन्नत कि खबर तूझे तेरे हि बन्दें है
राख का महल बनाने आये हैं
यंहा रहना अब मुश्किल बडा साथ हैं
अब आखिर मैं सिर्फ तुझसे हि गुजारिश करने आये है
कर थोडा रहम तू ही बडी उम्मीद लगाई है तूझसे
देख के लाशों का ढ़ेर आज काप उठे है रोम-रोम भी
ना जाने कैसी जन्नत का सपना का लेकर आये हैं-
मुश्किल जीवन होगा
जब लोटोंगे गाँव का मंजर बदला-बदला होगा
शहर कि हवा में गाँव थोडा मुश्किल जीवन होगा
कच्ची सडके,हर चार कदम पर गडडे
लड़खड़ाते-डगमगाते घर पोहचना होगा
रस्ते में पडने वाला हर घर फिर अपना लगेगा
बिते कल में फिर तू जीने लगेगा
पर शहर कि हवा में गाँव थोडा मुश्किल जीवन होगा
गली-गली शोर बच्चों का मेला होगा
शाम को फिर जल्दी सन्नाटा भी होगा
ना वंहा कोई तूझ से अंजाना होगा
कोई बचपन का यार तो कोई काका होगा
पर शहर कि हवा में गाँव थोडा मुश्किल जीवन होगा
घर का आंगन कच्चा होगा
महंगे रेस्तोरें से भोजन अच्छा होगा
जीवन बडा सरल होगा
पर हर कोई वंहा एक दुजे से जुडा होगा
लेकिन शहर कि हवा में गाँव थोडा मुश्किल जीवन होगा-
मेरे हर ख्वाब़ का ज़रिया है वो
मूझे हर ख्वाब में वहीं नजर आता है
खैर ख्वाब़ है आँख खुलते हि दुर हो जाता है वो
जरा नासमझ समझता है मूझे वो
हर बार नया खेल दिखाता है
खुद को सर्कस का किरदार समझता है
मूझ बिखरे को समेटने लगा है वो
उसे लगता है बेखबर हुं मै उससे
ऐसा हर बार जताता है वो
खैर ख्वाब़ है आँख खुलते हि दुर हो जाता है वो
दुनिया गोल है जो जंहा से जाता है वंही लौट आता है
पर हर दिन दिखने वाला ख्वाब़ एक दिन सच हो हि जाता है
रात का फिर इंतजार है वो सपना फिर हक्कित बन सा जाता है-
आजमाइशे बोहोत है जमाने में आजमाने को
पर हर बार हमें पुराना साज याद आता हैं
हम ठहरे पुराने ख्याल़ वाले लोग
हमें सिर्फ घर का एहसास लुभाता हैं
ज़माने कि दौड में हम जरा पिछे रहते हैं
हमें सिर्फ खुद का साथ पसंद आता हैं
हम ठहरे थोडे पुराने ख्याल़ वाले लोग
हमें समुद्र कि गहराइयों से ज्यादा किनारा भाता हैं-
सूनों कुमारी
मत भूलों कौन हो तुम,
शस्त्र संग धर लो तुम,
अंधा,बहरा ये सम्राज्य है,
ना गोविन्द आज तेरे साथ है,
चीर बचालो आज खुद हि तूम,
ये गांधी के तीन पुतलों कि सरकार है,
ये आज का सभ्य समाज है।
ना यंहा कोई पुरूषोत्तम राम है,
रावण से भी हिन लोग ये,
स्त्री को कर नग्न ये समझते उसमे सम्मान है,
ये गांधी के तीन पुतलों कि सरकार है,
ये आज का सभ्य समाज है।
कुलवधु कि रक्षा कैसे हो,
जब शस्त्र धारी सब लाचार है,
राम-कृष्ण और रावण भी सारे एक समान है,
सत्य दिखाये कौन जब सतरंज के सब हिस्सेदार है
ये गांधी के तीन पुतलों कि सरकार है,
ये आज का सभ्य समाज है।
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सूनों कुमारी
मत भूलों कौन हो तुम,
शस्त्र संग धर लो तुम,
अंधा,बहरा ये सम्राज्य है,
ना गोविन्द आज तेरे साथ है,
चीर बचालो आज खुद हि तूम,
ये गांधी के तीन पुतलों कि सरकार है,
ये आज का सभ्य समाज है।
ना यंहा कोई पुरूषोत्तम राम है,
रावण से भी हिन लोग ये,
स्त्री को कर नग्न ये समझते उसमे सम्मान है,
ये गांधी के तीन पुतलों कि सरकार है,
ये आज का सभ्य समाज है।
कुलवधु कि रक्षा कैसे हो,
जब शस्त्र धारी सब लाचार है,
राम-कृष्ण और रावण भी सारे एक समान है,
सत्य दिखाये कौन जब सतरंज के सब हिस्सेदार है
ये गांधी के तीन पुतलों कि सरकार है,
ये आज का सभ्य समाज है।
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सूनों कुमारी
मत भूलों कौन हो तुम,
शस्त्र संग धर लो तुम,
अंधा,बहरा ये सम्राज्य है,
ना गोविन्द आज तेरे साथ है,
चीर बचालो आज खुद हि तूम,
ये गांधी के तीन पुतलों कि सरकार है,
ये आज का सभ्य समाज है।
ना यंहा कोई पुरूषोत्तम राम है,
रावण से भी हिन लोग ये,
स्त्री को कर नग्न ये समझते उसमे सम्मान है,
ये गांधी के तीन पुतलों कि सरकार है,
ये आज का सभ्य समाज है।
कुलवधु कि रक्षा कैसे हो,
जब शस्त्र धारी सब लाचार है,
राम-कृष्ण और रावण भी सारे एक समान है,
सत्य दिखाये कौन जब सतरंज के सब हिस्सेदार है
ये गांधी के तीन पुतलों कि सरकार है,
ये आज का सभ्य समाज है।
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देश बदल रहा है
राहतें-राहतें कहते रहेंगे,
देश का नव निर्माण हो रहा है।
भूखा रहना कौन-सी बडी बात है,
विदेशों में डंका बोल रहा है।
हिन्दू-मुस्लिम का मुद्दा बडा है,
किन्तु नव सनातन अखंड हो रहा है।
एक तरफ देश जल रहा है,
चुप्पी थामे सारा देश पडा है,
किन्तु चंद्रयान तो सफल हो रहा है।
नंग प्रदर्शन सडको पर हो रह है पर ,
और दो मुल्कों के प्रेमियों के देख सारा देश चौक रहा है।
70 सालों में क्या किया पूर्व सरकार ने
ये शायद अब सबको ज्ञात हो रहा है,
कि कैसे वर्तमान सरकार ने देश का हाल कर दिया है।
क्या यही वो स्वप्न है जिसको सारा देश देख रहा है,
कि कैसे अपने देश का नव निर्माण हो रहा है।-
देश बदल रहा है
राहतें-राहतें कहते रहेंगे,
देश का नव निर्माण हो रहा है।
भूखा रहना कौन-सी बडी बात है,
विदेशों में डंका बोल रहा है।
हिन्दू-मुस्लिम का मुद्दा बडा है,
किन्तु नव सनातन अखंड हो रहा है।
एक तरफ देश जल रहा है,
चुप्पी थामे सारा देश पडा है,
किन्तु चंद्रयान तो सफल हो रहा है।
नंग प्रदर्शन सडको पर हो रह है पर ,
और दो मुल्कों के प्रेमियों के देख सारा देश चौक रहा है।
70 सालों में क्या किया पूर्व सरकार ने
ये शायद अब सबको ज्ञात हो रहा है,
कि कैसे वर्तमान सरकार ने देश का हाल कर दिया है।
क्या यही वो स्वप्न है जिसको सारा देश देख रहा है,
कि कैसे अपने देश का नव निर्माण हो रहा है।-