असल में हिंदी
आया हिन्दी का पखवाङा
होगा अब इसका भी दिखावा
सारे कागज हिंदी होंगे
देवनागिरी से रंगे होंगे
हम भी दौड़ रहे इस दौड़ में
आधी हिंदी आधी इंग्लिश की होङ में
अंग्रेजी भी पूर्ण आती नहीं
हिंदी भी छूट गई
छूट गए सब लग्गू लाठी
छूटे हलंत और बिदीं
उनसठ उनहत्तर उन्यासी का
फेर फिर से चलने लगा
सङसठ अङसठ उनसठ में
मन फिर से उलझ गया
राष्ट्र भाषा बनी नहीं
काज भाषा रही नहीं
हिंदी तेरी यह दशा कैसे
हम सब कर रहे
असल में मेरी हिंदी तू बस
14 सितंबर की ही रही।-
पुरुष कभी जताते नहीं,
प्यार कितना करते हैं
ये कभी भी बताते नहीं,
परवाह करते हैं वो ताऊम्र बिना बताये,
फिक्र करते हैं कितनी
ये कभी जताते नहीं,
ऐसें भी पुरुष देखे हैं मैंने
जो उम्र भर खामोश रह
कर प्रेम करते हैं ,बिना उम्मीद के निरंतर,
स्पर्श की चाह के बगैर भी
निभाते हैं ताऊम्र वो
अपनी अपनों से की गई अनंत मुहब्बत,ताऊम्र
कभी पिता बन कर
कभी भाई, बेटा, मित्र बन कर
कभी हमसफर बन कर
और कई बार
एक अदृश्य प्रेमी बन कर,
निभाते ही रहते हैं
बिना रुके बिना थके,अपने सारे कर्तव्य
जीवन के इस पथ पर।-
थक के जमाने से जो तेरे कांधे पे रखूं सर अपना,
थाम लेना यूं ही बाहों में कि भूल जाऊ सारा गम अपना।-
शः श् साफ तो हो ना......
दर्द से तड़प कर चुपचाप सी बैठी थी किनारे पर,
हाथ से पेट पकड़े दाग के डर से सहमी,
मां ने कहा था दूर रहना चूल्हे से,पूजा से
क्योंकि तुम साफ नहीं हो ना...
चेहरे पर दिखने ना पाए कोई शिकन भी,
किसीको भी दर्द बताना ना
कतरन कोई उठा कर लगा लो ,
उसे छुपा कर रखना धूप में रखना ना...
चोट लगने पर दिखाया करते थे सबको ,
दर्द और खून अपना,ढाढस बंधाया जाता था
ये दर्द था बहुत पर सिखाया सहना ,किसीको जताना ना...
जीवन देने वाले हिस्से को ही अशुद्ध बता डाला,
दर्द सहना औरत का धर्म बना डाला ,
एक दाग पर उठती ,बदलती नजरें,
मुड़ कर सबका मुस्कुराना पर बताना ना..
ये दर्द कहां जान सकोगे तुम,
शर्म से आंखे हमारी झुक जाना ,
प्रकृति की सृजात्मकता पर सवाल तुम्हारा उठाना...
बस इतना ही कर देना गर बांट ना सको
ये दर्द, कि सवाल कम करना
कुछ मदद कर दो तो बेहतर ,
वरना चुप्पी साधे रहना तुम.....
शः शः शः मैं साफ नहीं हूं....
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जिन्दगी का सफ़र बहुत आसान हो जाएगा,
आधी परेशानियों का नामो निशान ना रह जायेगा,
अपनी जिंदगी से जब नकारात्मक लोगों को निकाला जाएगा।-
कौन कहता है,रिश्ते मुफ्त मिलते हैं
मुफ्त में तो हवा भी नहीं मिलती
एक सांस छोड़नी पड़ती है
एक सांस लेने के लिए।-
सुन ओ चंचल शोख हवा,
जाके सजना से कहना
मैं बागों की बुलबुल,
मुझे पिंजरे में नहीं रहना
ऊपर नील गगन हो,
नीचे हरा भरा हो अंगना
मुझे है इन मस्त
बयारों के संग बहना।-
अब मैं अक्सर दुआ मांगू,
काश कि मैं मोबाइल हो जाऊं
दिन हो के रात ,वक्त तेरे साथ बिताऊं
तू दौड़ कर आगे बढ़ना चाहे
पर मैं तो तुझ संग रुकना चाहूं
सारी ख्वाहिशों की तरह आकर,
तेरी बाहों में सिमटना चाहूं,
तेरे लफ्ज़ तेरी सासें,धड़कने तेरी
बस तुझी को मैं सुनना चाहूं
तू हवा की तरह बहे हर कहीं
मैं पेड़ सी खड़ी रह जाऊं।-
वो कशक ,वो जज़्बात
कहीं गुम हुए लगते हैं
वो चाहत,वो बातूनी दिन रात
कहीं खोए से लगते हैं
हम हैं,तुम हो,दिल भी है मगर
वो प्यार की सौगात
कहीं सोए से लगते हैं
वो तड़प,वो इंतजार
अब क्यों नहीं दिखता
क्या अधिकार और फ़र्ज़
के साथ प्यार नहीं टिकता,
क्या सच में
जता देने से रिश्ता जवां नहीं रहता?-