Neetish Patel   (Neetish)
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Joined 21 November 2017


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Joined 21 November 2017
25 APR AT 20:31

यही एक राहत थी और गिला भी यही
वो मिला तो सही पर कभी मिला नहीं

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23 APR AT 22:33

इन आंखों के घरोंदो में
ख्वाब अब भी पलते हैं
कदम जो साथ चलते थे
साथ अब भी चलते हैं
अब भी सवेरा होता है
अब भी दीप जलते हैं
अब भी बहार आती है
फूल अब भी खिलते हैं

वह कच्ची उम्र का प्रेम
कभी जो प्राण लगता था
अब भी सांस चलती है
अब भी दिन निकलते हैं

सब बेफिक्र परिंदों के
वक्त पंख कुतरता है
कैसा भी हो खुमार
एक दिन उतरता है
जब जेब की कंगाली पर
हंसती जिम्मेदारी है
तब जाकर पता चलता है
दिल पर पेट भारी है

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19 APR AT 15:45

मुझे बोलना बहुत पसंद है,
पर सिर्फ उनसे जो मुझे सुनना पसंद करते हों
वरना तो मैं अक्सर खामोश ही मिलूंगा

अब मैं बात पे बात ज्यादा बात नहीं करता
मैं चुप हो जाता हूं जब लगता है
सामने वाला मुझे नही सुनना चाहता

हां थोड़ा अजीब सा हो गया हूं,
पर क्या करूं ऐसा ही हूं मैं
शायद अब थोड़ा अपने करीब हो गया हूं

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18 APR AT 0:00

तुम्हारे साथ रहकर अक्सर मुझे ऐसा महसूस हुआ है
कि दिशाएँ पास आ गई हैं,
दुनिया सिमटकर एक आँगन-सी बन गई है
हर रास्ता छोटा हो गया है, जो खचाखच भरा है,
कहीं भी एकांत नहीं, ना बाहर, ना भीतर।

हर चीज़ का आकार घट गया है, पेड़ इतने छोटे हो गए हैं
कि मैं उनके शीश पर हाथ रख आशीष दे सकता हूँ,
मैं जब चाहूँ बादलों में मुँह छिपा सकता हूँ।

तुम्हारे साथ रहकर अक्सर मुझे महसूस हुआ है
कि हर बात का एक मतलब होता है,
यहाँ तक कि घास के हिलने का भी, हवा का खिड़की से आने का,
और धूप का दीवार पर चढ़कर चले जाने का।

तुम्हारे साथ रहकर अक्सर मुझे लगा है
जीवन और मृत्यु के बीच जो भूमि है
वह नियति की नहीं मेरी है।

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16 APR AT 23:56

दो किनारों का मिलन होता हैं क्या
तुमसे बिछड़कर ऐसा ही लगा मुझको

मैं जानता हूं ये कुदरती सितम हैं सारे
जुदा करने में कुदरत का हाथ भी लगा मुझको

क्या हिमाकत करूं मैं ये कहने की
भूलने में महज़ एक अरसा ही लगा मुझको...
🤍

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15 APR AT 22:15

कुछ फसाने सुनकर भी अनसुने रह गए,
कुछ पन्नों में, कुछ आंखों में दबे रह गए,

ज़िक्र करूं तो किस्से और किस बात का,
ये सोचकर सहमे और सिमटे से रह गए,

कुछ कहना किसी से मुनासिब नहीं लगता,
सभी वक्त के मारे तो हम किससे कहें,

कहना पड़ता है सबसे कि सब ठीक है,
कहते कहते ही ठीक हाल बुरे रह गए,

हयात नए नए चेहरे तो हर रोज दिखा रही ,
एक हम है जो पुराने में ही उलझे रह गए,

जिंदगी जीना भी इसी का नाम है मेरी जां,
इसी भ्रम में मौत को जिंदगी कहते रह गए...

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12 APR AT 18:40

किसी सच से डरा सहमा
किसी जंगल सा है वीराँ
किसी तारे सा है गिरता
घास पर ओस सा ठहरा
मेरा मन दुनिया से छुपकर
किसी कोने में है बैठा
किसी उम्मीद से हारा
किसी ख्वाहिश का है मारा
किसी के अश्क में बहता
मेरा मन डूबता रहता
किसी के झूठ सा प्यारा
किसी के गम का सहारा
किसी की आँख का पानी
जैसे कोई बिसरी कहानी
जिसे कोई अब नहीं कहता
मेरा मन डूबता रहता

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10 APR AT 21:18

चलो तुम्हें सब्र से मिलवाते हैं,
टूट कर भी हम कैसे मुस्कुराते हैं,
जख्म़ खाये हैं,
सहना भी हमको होगा,
किसी बेरह़म को इसका,
भरम़ भी क्या होगा,
दगा़ देकर जो भूल जाते हैं,
हम बस उसका ,
तमाशा देखकर रह जाते हैं

फिर भी ल़ब नहीं खोलते,
सुनता भी कौन ,
आखिर ,
जो हम कुछ बोलते

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9 APR AT 11:22

ज़िंदगी की राहों में, कभी हंसते हुए चलो,
कभी ग़मों के साथ, संगीनी बातें करते चलो।

दिल की बातें जो, लफ़्ज़ों में ना कह सके,
उन्हें मुस्कान में, छुपाकर रखते चलो।

मोहब्बत की राहों में, दिल को बे-गुनाह करके,
खुदा से रुबरू होकर, दुआएं माँगते चलो।

कभी हार ना मानो, जीत का इज़हार करो,
अपनी मेहनत को, ताकतवर बनाते चलो।

दुनिया की चाहत में, न खो जाओ कभी भी,
अपने असली रंग में, खुद को पहचानते चलो।

अपनी मोहब्बत को, ज़ुबां से मत कहो,
उसे महसूस करने की, ख्वाहिश रखते चलो।

ज़िंदगी के हर पल में, खुशियाँ ढूंढो तुम,
खुद को खुश रखने के, तरीके ढूंढते चलो।

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9 APR AT 0:13

मै किसी अजनबी के सफर का राही तो बन सकता हूं
पर किसी मुसाफिर की मंजिल नही

मै किसी शायर की आखिरी पंक्ति सा हुँ
जिसे समझ पाना हर किसी के बस में नही

मै किसी को लिखा गया प्रेम पत्र सा हूं शायद
जिसे पढ़ने वाले के आंखो में आसूं नही

मै उस चांद सा हूं बिल्कुल जिसे मोहब्बत है रात से,
उजाले से मेरी भी कभी बनी नही

मै कोई ख्वाब हूं जिसे देखने वाले ने अधूरा छोड़ दिया
क्योकिं मै कोई ख्वाब सा लगा नही

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